5/5 - (3 votes)

[Syllabus: UPSC सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा; सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-1; आधुनिक भारत का इतिहास; Topic: ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का आर्थिक प्रभाव; Sub-Topic: तीन भू-राजस्व प्रणालियां]

अभ्यास प्रश्न: 18वीं सदी और आरंभिक 19वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा लागू की गई विभिन्न भू-राजस्व प्रणालियों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

Q. Highlight the main features of the various land revenue systems implemented by the British in the 18th century and early 19th century.

[i] दृष्टिकोण:

भारत में अंग्रेजों द्वारा भू-राजस्व संग्रहण के आरंभ का संक्षिप्त विवरण दीजिए।

18वीं सदी में उनके द्वारा प्रारंभ विभिन्न भू-राजस्व प्रणालियों और उनकी विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

उन क्षेत्रों पर विशेष बल दीजिए जिनमें इन्हें लागू किया गया था।

इन प्रणालियों के प्रभाव पर संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

[ii] परिचय: 

उत्तर: 1765 में बंगाल के दीवानी अधिकार प्राप्त करने के पश्चात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कंपनी के राजस्व में वृद्धि हेतु प्रयास किए गए। यह अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों और प्रणालियों में अभिव्यक्त हुआ। उन्होंने अधिकतम आय प्राप्त करने हेतु नवीन भू-धृति व्यवस्था और राजस्व प्रशासन से संबंधित नीतियों को अपनाकर देश की कृषि व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन किया।

तत्पश्चात वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा 1773 में इजारेदारी प्रथा को अपनाया गया। इसमें सर्वाधिक बोली लगाने वाले को 5 वर्ष के लिए भूमि अधिकार प्रदान करने का प्रावधान किया गया था। पुन: 1786 में राजस्व संग्रह अधिकतम करने हेतु वार्षिक अवधि को अपनाया गया।

हालांकि, इन परिवर्तनों की विफलता के पश्चात, अंग्रेजों ने क्षेत्र-विशेष आधारित तीन विभिन्न प्रकार की भू-राजस्व प्रणालियां नामतः स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी व्यवस्था और महालवाड़ी व्यवस्था लागू की।

[iii] स्थायी बंदोबस्त की प्रमुख विशेषताएं:

#1. स्थायी बंदोबस्त 1793 में लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त अधिनियम के माध्यम से बंगाल और बिहार में लागू किया गया था।

#2. जमींदारों और राजस्व संग्राहकों को रैयतों से भू-राजस्व संग्रह करने में न केवल सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करना था बल्कि वे भूमि के स्वामी भी बन गए थे। स्वामित्व का उनका अधिकार वंशानुगत और हस्तांतरणीय बना दिया गया।

#3. इस बंदोबस्त में कृषकों के परंपरागत अधिकारों की उपेक्षा की गई थी। इसके तहत कृषकों को केवल काश्तकार बना दिया गया था।

#4. इसके तहत जमींदारों को किसानों से वसूल किए गए भू-राजस्व का 10/11वां भाग सरकार को सौंपना था और केवल 1/11वां भाग स्वयं के लिए रखने का प्रावधान किया गया था। साथ ही भुगतान की जाने वाली राशि को सदैव के लिए निश्चित कर दिया गया था।

#5. राजस्व का प्रारंभिक निर्धारण मनमाने ढंग से और जमींदारों के साथ बिना किसी भी परामर्श के किया गया। यह अंग्रेजों के लिए आय की स्थिरता की गारंटी प्रदान करता था।

#6. कालांतर में इसका विस्तार उड़ीसा, मद्रास के उत्तरी जिलों और वाराणसी के कुछ जिलों में किया गया।

[iv] रैयतवाड़ी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं:

#1. दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी भारत में ब्रिटिश शासन का विस्तार होने पर अंग्रेजों को ज्ञात हुआ कि इन क्षेत्रों में बड़ी भूसंपदाओं वाले जमींदार नहीं हैं, जिनके साथ भू-राजस्व बंदोवस्त किया जा सके।

#2. इसलिए, अंग्रेजों ने मद्रास, बंबई और बरार क्षेत्र में राजस्व प्रणाली का एक नया रूप लागू किया जिसे रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा जाता है।

#3. रैयतवाड़ी व्यवस्था के अंतर्गत, रैयत (कृषक) और राज्य के मध्य प्रत्यक्ष कर संपर्क स्थापित किया गया।

#4. भू-राजस्व के भुगतान ‘ के अधीन कृषकों को उनके भूखंड के स्वामी के रूप में मान्यता दी गई। यह स्वामित्व सम्बन्धी व्यवस्था स्थायी नहीं थी बल्कि 20 से 30 वर्ष पश्चात् इसे पुनर्निर्धारित किया जाना था।

[v] महालवाड़ी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं:

#1. यह जमींदारी व्यवस्था का संशोधित संस्करण था जिसे गंगा घाटी, उत्तर पश्चिम प्रांत, मध्य भारत के कुछ भागों और पंजाब में लागू किया गया।

#2. खेती सामूहिक रूप से भूमि को परस्पर साझा करके की जाती थी और कर निर्धारण पूरे गांव या महाल के लिए निश्चित कर दिया जाता था।

#3. करों का भुगतान करने का उत्तरदायित्व उन भूस्वामियों या मुखियों का होता था जो सामूहिक रूप से गांव या महाल का प्रमुख होने का दावा करते थे।

#4. इस व्यवस्था को भी समय-समय पर संशोधित किया गया।

[vi] निष्कर्ष:

ब्रिटिश राजस्व व्यवस्था द्वारा भारतीय समाज के सभी क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि सामाजिक संरचना अर्थात कृषक वर्ग में भूमि नियंत्रण संरचना के संबंध में कई परिवर्तन किए गए। इसने संपूर्ण भारत में कई किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि निर्मित की।

"www.educationias.com" राजेन्द्र मोहविया सर द्वारा UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में शुरू की गई पहल है, जो अपनी ऐतिहासिक समझ और विश्लेषणात्मक कौशल को निखारने के लिए डिज़ाइन किए गए पाठ्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करती है। उत्कृष्टता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एक बहुआयामी दृष्टिकोण में परिलक्षित होती है जिसमें मुख्य रूप से UPSC सिविल सेवा परीक्षा (प्रारंभिक एवं मुख्य) के विषयवार नोट्स, दैनिक उत्तर लेखन, टेस्ट सीरीज़ (प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा), करंट अफेयर्स (दैनिक एवं मासिक स्तर पर) और विगत वर्षों (2023-2013) में पूछे गए प्रश्नपत्रों के व्याख्या सहित उत्तर को शामिल किया गया है।

Leave a Comment

Translate »
https://educationias.com/
1
Hello
Hello 👋
Can we help you?