अरबिंदो घोष को ‘देशभक्त कवि, राष्ट्रवाद का मुखर वक्ता और मानवता का प्रेमी’ क्यों माना जाता है? कारण बताइए। |
दृष्टिकोणः
(i) अरबिंदो घोष के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
(ii) उन योगदानों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण उन्हें उपर्युक्त उपाधि प्राप्त हुई।
(iii) उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
परिचय:
अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को पश्चिम बंगाल के कलकत्ता जिले में हुआ था। 20वीं सदी की शुरुआत में वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महान व्यक्तित्व के रूप में उभरे। उनके बहुमुखी योगदान से प्रेरित होकर सी.आर. दास ने उन्हें ‘देशभक्त कवि, राष्ट्रवाद का मुखर वक्ता और मानवता का प्रेमी’ कहा।
देशभक्त कविः
1. राष्ट्रवाद के समर्थक: अरबिंदो घोष राष्ट्रवाद के समर्थक थे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से अंग्रेजों का विरोध किया। वे राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण की भावना से किए गए अपने कार्यों के लिए जाने जाते हैं।
2. ब्रिटिश नीतियों की कट्टर आलोचनाः अरबिंदो घोष ने बड़ौदा सरकार की नौकरी छोड़ दी और वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद की तीखी आलोचना करने के लिए युगांतर एवं कर्मयोगी जैसी पत्रिकाओं से जुड़ गए।
3. क्रांतिकारी राष्ट्रवादः उन्होंने अनुनय-विनय के स्थान पर कट्टरपंथी तरीकों और क्रांतिकारी कार्यनीतियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए देशभक्ति पत्रिका ‘बंदे मातरम’ की शुरुआत की।
4. स्वतंत्रता संग्राम को सशक्त बनानाः ‘वेलकम टू द प्रोफेट ऑफ़ नेशनलिज्म’ निबंध उनके प्रसिद्ध निबंधों में से एक है। इसके माध्यम से उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष का समर्थन किया और उसे मजबूती प्रदान की।
5. प्रारंभिक सक्रियताः कैम्ब्रिज में अपने कॉलेज के दिनों में, वह “इंडियन मजलिस” नामक छात्र संघ में शामिल हुए। वहीं उन्होंने अपनी मातृभूमि के उत्थान के लिए “लोटस एंड डैगर” नामक एक गुप्त संगठन का भी गठन किया था।
राष्ट्रवाद का मुखर वक्ताः
1. जन आंदोलन में योगदानः उन्होंने राष्ट्रवाद के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे उन कट्टरपंथी नेताओं में से एक थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को एक शक्तिशाली जन आंदोलन में परिवर्तित किया।
2. पूर्ण स्वतंत्रताः अरबिंदो पहले भारतीय राजनेता थे जिन्होंने “स्वराज” के बजाय “स्वतंत्रता” शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का दृढ़ता से समर्थन किया क्योंकि उनके अनुसार, राजनीतिक स्वतंत्रता के बिना किसी प्रकार का वास्तविक विकास संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने सामाजिक-आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों से पहले राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की बात की।
3. क्रांतिकारियों को प्रेरित कियाः उन्होंने बंगाल में ‘अनुशीलन’ और ‘युगांतर’ जैसे गुप्त संगठनों को संगठित करने में सहयोग किया। उन्होंने क्षेत्र के अनेक कट्टरपंथी युवाओं को क्रांति का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लोगों से मातृभूमि की खातिर कष्ट सहने और बलिदान देने का भी आग्रह किया।
4. आध्यात्मिक राष्ट्रवादः राष्ट्रवाद शब्द की देशभक्तिपूर्ण सामान्य समझ के विपरीत, अरबिंदो ने राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक आयाम को परिभाषित किया।
मानवता का प्रेमीः
1. मानवीय एकता पर बलः उन्हें मानव जाति की आंतरिक क्षमता पर अत्यधिक विश्वास था कि यह वर्तमान सीमाओं को पार कर सकती है। अरबिंदो के अनुसार, सभ्यता की प्रगति इसके मानवीय एकता की ओर अग्रसर होने पर निर्भर करती है।
2. मानवता की स्वतंत्रताः उन्होंने अज्ञानता के बंधन से मानवता की मुक्ति के लिए भी प्रयास किया, जो मानवों के विविध दुखों का कारण है।
3. भारत के लिए व्यापक अंतर्राष्ट्रीय योगदानः भारत के ब्रिटिश शासन के पूर्णतः अधीन होने के बावजूद, उनका दृढ़ विश्वास था कि स्वतंत्र भारत के पास एक ऐसा आध्यात्मिक संदेश है जिसकी विश्व के लोगों को आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
अरबिंदो घोष की चिरकालिक विरासत ‘द लाइफ डिवाइन’, ‘सावित्री’, ‘गीता पर निबंध’, और ‘डिफेन्स ऑफ इंडियन कल्चर’ जैसी मौलिक रचनाओं में निहित है।
ये रचनाएं मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करती हैं और राष्ट्रीय विकास एवं एकता की दिशा में मार्ग प्रशस्त करती हैं।