प्रश्न: वर्तमान वैश्विक भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग को विकसित करने के प्रयास कैसे मौजूदा वैश्विक खिलाड़ियों पर निर्भरता को कम कर सकते हैं?
Que. Evaluate the role of semiconductor supply chains in the current global geo-economic and geopolitical scenario. How can India’s efforts to develop its semiconductor industry help reduce dependency on existing global players?
परिचय(i) परिचय: वैश्विक भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं के महत्व पर प्रकाश डालिए तथा प्रौद्योगिकी, व्यापार और शक्ति गतिशीलता में उनकी भूमिका पर ध्यान केंद्रित कीजिए। (ii) मुख्य भाग: वैश्विक सेमीकंडक्टर की कमी, अर्थव्यवस्थाओं पर इसके प्रभाव और अमेरिका और चीन जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच रणनीतिक तनाव का मूल्यांकन कीजिए। साथ ही, चर्चा कीजिए कि कैसे भारत के प्रयास (जैसे, सेमीकंडक्टर मिशन) आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकते हैं और प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों पर निर्भरता कम कर सकते हैं। (iii) निष्कर्ष: आर्थिक विकास और तकनीकी सुरक्षा का समर्थन करते हुए वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की भारत की क्षमता पर जोर दीजिए। |
परिचय
सेमीकंडक्टर उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास का महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है। सेमीकंडक्टर चिप्स का उपयोग हर आधुनिक डिवाइस में होता है, चाहे वह स्मार्टफोन हो, लैपटॉप, या फिर ऑटोमोटिव और रक्षा उपकरण। हाल ही में, वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण कई देशों ने अपनी आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए इन पर निर्भरता की समीक्षा शुरू की है। वर्तमान भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला न केवल व्यापारिक प्रतिस्पर्धा बल्कि रणनीतिक महत्व भी रखती है।
वैश्विक भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला की भूमिका
(i) आर्थिक शक्ति और व्यापारिक प्रभुत्व: सेमीकंडक्टर उद्योग कुछ गिने-चुने देशों के हाथ में केंद्रित है, विशेष रूप से ताइवान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका। इन देशों का उद्योग में प्रभुत्व उन्हें आर्थिक और रणनीतिक रूप से मजबूत बनाता है।
(ii) भू-राजनीतिक तनाव और तकनीकी प्रभुत्व: अमेरिका और चीन के बीच चल रही तकनीकी होड़ सेमीकंडक्टर उद्योग को रणनीतिक हथियार बना रही है। अमेरिका ने चीन की सेमीकंडक्टर आपूर्ति में प्रतिबंध लगाकर उसकी तकनीकी प्रगति को धीमा करने की कोशिश की है, जबकि चीन अपनी निर्भरता कम करने के लिए आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
(iii) सुरक्षा और आत्मनिर्भरता: राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, कई देश यह महसूस कर रहे हैं कि विदेशी सेमीकंडक्टर आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता उन्हें कमजोर बना सकती है। विशेष रूप से रक्षा और संवेदनशील तकनीकी क्षेत्रों में, स्वदेशी चिप उत्पादन की आवश्यकता बढ़ गई है।
(iv) वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान: COVID-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है, जिससे सेमीकंडक्टर की कमी का सामना करना पड़ा। इसके कारण उत्पादन ठप्प हो गया और ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और अन्य उद्योगों में भारी नुकसान हुआ। इसने आत्मनिर्भरता और विविधीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया।
भारत के प्रयास और संभावनाएँ
(i) सेमीकंडक्टर मिशन: भारत सरकार ने ‘सेमीकंडक्टर मिशन’ के तहत स्वदेशी सेमीकंडक्टर उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 10 अरब डॉलर का निवेश प्रस्तावित किया है। इसका उद्देश्य चिप निर्माण, डिजाइन और परीक्षण के क्षेत्र में भारत की क्षमता को विकसित करना है।
(ii) वैश्विक निर्भरता में कमी: भारत अपनी सेमीकंडक्टर उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे वैश्विक खिलाड़ियों पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है। यह न केवल घरेलू उद्योगों को सुरक्षित करेगा, बल्कि भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी भी बना सकता है।
(iii) आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया: भारत की सेमीकंडक्टर उत्पादन क्षमता बढ़ाने से ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को भी बल मिलेगा। इससे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, और रक्षा उत्पादन को घरेलू स्तर पर प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक विश्वसनीय हिस्सा बन सकता है।
(iv) प्रतिभा और नवाचार: भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों, जैसे IITs और IISc, में तकनीकी अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देकर सेमीकंडक्टर डिजाइन और अनुसंधान के क्षेत्र में योगदान दिया जा सकता है। इससे नवाचार को बल मिलेगा और भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर डिजाइन हब के रूप में उभर सकता है।
(v) वैश्विक सहयोग: भारत ने सेमीकंडक्टर उत्पादन में ताइवान और जापान जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं। इस तरह के सहयोग से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता प्राप्त हो सकती है, जिससे वह अपनी उत्पादन क्षमता को तेज़ी से बढ़ा सके।
(vi) स्थानीय रोजगार और आर्थिक विकास: भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास से लाखों नए रोजगार उत्पन्न हो सकते हैं और साथ ही यह तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र को भी मजबूत करेगा। इससे भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।
चुनौतियाँ और समाधान
(i) तकनीकी और बुनियादी ढांचे की कमी: भारत में सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है, जैसे उन्नत मैन्युफैक्चरिंग इकाइयाँ और हाई-एंड मशीनरी। इसके समाधान के लिए सरकार को विदेशी कंपनियों और विशेषज्ञों के साथ सहयोग बढ़ाना होगा।
(ii) प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार: सेमीकंडक्टर उद्योग में पहले से ही ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का प्रभुत्व है। इस प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए भारत को अपनी लागत और उत्पादकता में सुधार करना होगा। साथ ही, सरकारी नीतियों को उद्योग के अनुकूल बनाना होगा।
(iii) कुशल जनशक्ति: सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन तैयार करने के लिए तकनीकी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना जरूरी है।
निष्कर्ष
भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग को विकसित करने के प्रयास मौजूदा वैश्विक खिलाड़ियों पर निर्भरता को कम कर सकते हैं, और साथ ही भारत को एक प्रमुख तकनीकी और आर्थिक शक्ति बना सकते हैं। सेमीकंडक्टर उद्योग न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत की क्षमता को भी परिभाषित करेगा। आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहयोग के माध्यम से, भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में एक मजबूत और स्थायी उपस्थिति स्थापित कर सकता है।