प्रश्न: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सेलुलर नेटवर्क की तैनाती और उपयोग में बाधा डालने वाले प्रमुख कारकों का परीक्षण कीजिए। साथ ही शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन को पाटने के उपाय भी सुझाइए।
Examine the key factors impeding the deployment and use of cellular networks in rural areas of India. Also suggest measures to bridge the urban-rural digital divide.
उत्तर: भारत में डिजिटल परिवर्तन की दिशा में प्रगति के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल कनेक्टिविटी की स्थिति असंतुलित और विखंडित बनी हुई है। शहरी क्षेत्रों में टेली-घनत्व 125% से अधिक है, जबकि ग्रामीण भारत अब भी 60% के आसपास सीमित है।
ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क तैनाती की बाधाएँ
(1) भौगोलिक एवं भौतिक अवसंरचना की सीमाएँ: दूरस्थ क्षेत्रों में संचार अवसंरचना की स्थापना भौगोलिक जटिलताओं, दुर्गम स्थलाकृति, अपर्याप्त परिवहन और बिजली आपूर्ति की निरंतरता जैसे अवरोधों से जूझती है। इन स्थितियों में टावर निर्माण, उपकरण रखरखाव और लॉजिस्टिक्स अत्यधिक खर्चीले तथा तकनीकी रूप से कठिन हो जाते हैं।
(2) न्यून जनसंख्या घनत्व और आर्थिक अनाकर्षकता: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी की कम सघनता से प्रति उपयोगकर्ता औसत राजस्व (ARPU) नगण्य हो जाता है, जिससे दूरसंचार कंपनियों को निवेश पर अपेक्षित लाभ नहीं मिलता। इससे निजी क्षेत्र का रुझान ग्रामीण नेटवर्क विस्तार से विमुख हो जाता है।
(3) डिजिटल साक्षरता और मांग में कमी: ग्रामीण भारत में मोबाइल इंटरनेट, डिजिटल सेवाओं और अनुप्रयोगों की उपयोगिता संबंधी जागरूकता का अभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। सीमित डिजिटल साक्षरता के कारण ग्रामीण समाज में मोबाइल नेटवर्क की मांग स्वाभाविक रूप से अविकसित और न्यून बनी रहती है।
(4) नीतिगत विलंब और नियामकीय बाधाएँ: स्पेक्ट्रम आवंटन की पारदर्शिता में कमी, दीर्घकालिक लाइसेंसिंग प्रक्रियाएँ और स्थानीय स्तर पर अनुमतियों की जटिलता नेटवर्क तैनाती की गति को अवरुद्ध करती हैं। इसके अतिरिक्त, नीतियों में ग्रामीण प्राथमिकता के अभाव से असमानता और भी गहरी हो जाती है।
(5) निजी क्षेत्र की प्राथमिकता असंतुलन: निजी टेलीकॉम कंपनियाँ अधिक राजस्व और ग्राहकों की घनता वाले शहरी बाजारों को वरीयता देती हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा होती है और डिजिटल विभाजन बढ़ता है। इसके समाधान हेतु अनिवार्य सेवा दायित्व (USO) को सशक्त बनाना अनिवार्य है।
डिजिटल विभाजन को पाटने के रणनीतिक उपाय
(1) भारतनेट परियोजना का प्रभावशाली कार्यान्वयन: भारतनेट योजना द्वारा ग्राम पंचायत स्तर तक फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, किंतु इसकी क्रियान्वयन गति असंगत रही है। इसे मिशन मोड में लाकर स्थानीय संस्थाओं की भागीदारी और नियमित ऑडिट द्वारा परिणामोन्मुखी बनाना आवश्यक है।
(2) सस्ती और स्थानीय प्रौद्योगिकी समाधानों का विकास: पारंपरिक टावरों की सीमाओं से परे जाकर लो-कॉस्ट स्मॉल सेल्स, मेष नेटवर्क, ड्रोन-बेस्ड रिले और उपग्रह संचार जैसी तकनीकों को अपनाकर कम अवसंरचनागत निर्भरता वाले कनेक्टिविटी मॉडल विकसित किए जा सकते हैं। इससे लागत और समय दोनों में उल्लेखनीय बचत होगी।
(3) डिजिटल साक्षरता के समग्र कार्यक्रम: केवल अवसंरचना ही नहीं, बल्कि उसकी प्रभावी उपयोगिता हेतु नागरिकों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। ग्राम स्तर पर ICT प्रशिक्षण केंद्र, महिला-केंद्रित डिजिटल पाठ्यक्रम तथा स्थानीय भाषा में सामग्री आधारित शिक्षा अभियान इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
(4) सार्वजनिक-निजी भागीदारी को पुनर्परिभाषित करना: PPP मॉडल को केवल वित्तीय साझेदारी तक सीमित न रखते हुए, इसे नियामकीय लचीलापन, तकनीकी सहयोग और सेवा वितरण के स्तर पर भी लागू करना होगा। इसके लिए नीति आयोग और TRAI को समन्वित रणनीति बनानी चाहिए जिससे भागीदारी संरचनात्मक रूप से संतुलित हो।
(5) ग्राम्य डिजिटल सेवाओं की मांग सृजन: यदि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, वित्तीय समावेशन और प्रशासनिक सेवाओं को मोबाइल कनेक्टिविटी से जोड़ा जाए, तो ग्रामीण समाज में इसकी स्वाभाविक मांग उत्पन्न होगी। यह मांग आपूर्ति को प्रोत्साहित करेगी और सतत डिजिटल इकोसिस्टम का निर्माण करेगी।
भारत में डिजिटल समावेशन की सफलता का मार्ग केवल शहरी क्षेत्रों में 5G जैसी उच्च तकनीक से नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी डिजिटल पहुंच के सुदृढ़ीकरण से होकर जाता है। यह केवल तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, आर्थिक समावेशन और लोकतांत्रिक सशक्तिकरण की दिशा में एक नैतिक अनिवार्यता है।