प्रश्न: भारत में हाल ही में न्यायिक निर्णयों के संदर्भ में निष्क्रिय इच्छामृत्यु के अभ्यास में शामिल नैतिक दुविधाओं का परीक्षण कीजिए। इन नैतिक विचारों के घातक रूप से बीमार रोगियों के सम्मान के साथ मरने के अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिए।
Examine the ethical dilemmas involved in the practice of passive euthanasia, with reference to recent judicial pronouncements in India. Discuss the implications of these ethical considerations on the rights of terminally ill patients to die with dignity.
उत्तर: निष्क्रिय इच्छामृत्यु वह प्रक्रिया है जिसमें रोगी को जीवनरक्षक उपचार न देकर प्राकृतिक रूप से मृत्यु की अनुमति दी जाती है। भारत में यह विषय गहरे नैतिक और कानूनी विवादों से जुड़ा हुआ है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसको सीमित रूप में वैध घोषित किया, लेकिन इससे जुड़े नैतिक प्रश्न अभी भी अनसुलझे हैं।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु की नैतिक दुविधाएँ
(1) मानव जीवन का संरक्षण: चिकित्सा क्षेत्र का प्राथमिक उद्देश्य रोगी का जीवन बचाना है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु जीवन को समाप्त करने की अनुमति देता है, जिससे चिकित्सा नैतिकता पर प्रश्न उठते हैं और इसे मानवीय मूल्यों के विपरीत माना जाता है।
(2) रोगी की स्वायत्तता: गंभीर रूप से पीड़ित रोगी को अपनी चिकित्सा और मृत्यु से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। निष्क्रिय इच्छामृत्यु इस स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, लेकिन परिवार और चिकित्सा पेशे में विरोधाभास उत्पन्न कर सकता है।
(3) धार्मिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: भारत में अधिकांश धार्मिक विचार जीवन के संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं। निष्क्रिय इच्छामृत्यु को स्वीकार करना कई समाजों के धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों के विरोध में जा सकता है।
(4) संभावित दुरुपयोग: इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देने से अनैतिक लाभ उठाने की संभावना बढ़ सकती है। यदि नियंत्रण और निगरानी प्रभावी न हो, तो यह कमजोर रोगियों के लिए शोषण का माध्यम बन सकता है।
(5) चिकित्सा पद्धति और नैतिकता: डॉक्टरों की नैतिक जिम्मेदारी जीवन को बचाने की होती है। यदि इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिलती है, तो चिकित्सकों के निर्णय पर नैतिक और कानूनी दबाव बढ़ सकता है, जिससे चिकित्सा क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु का घातक रूप से बीमार रोगियों के अधिकारों पर प्रभाव
(1) गरिमा के साथ मृत्यु: गंभीर रूप से पीड़ित रोगी अत्यधिक दर्द और असहनीय स्थिति का सामना करते हैं। निष्क्रिय इच्छामृत्यु उन्हें गरिमा और सम्मान के साथ मृत्यु प्राप्त करने का अधिकार देता है।
(2) रोगी की इच्छा का सम्मान: यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि रोगी को जबरन लंबी चिकित्सा प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना पड़े। इच्छामृत्यु के माध्यम से उनकी स्वतंत्रता और गरिमा का संरक्षण किया जाता है।
(3) परिवार और समाज पर प्रभाव: कई बार रोगी की दीर्घकालिक चिकित्सा के कारण परिवार पर मानसिक और आर्थिक बोझ पड़ता है। इच्छामृत्यु से यह दबाव कम किया जा सकता है, जिससे परिवार की स्थिति बेहतर हो सकती है।
(4) कानूनी सुरक्षा और पारदर्शिता: सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ वैध बनाया गया है, जिससे रोगियों को कानूनी सुरक्षा और निष्पक्षता प्राप्त होती है।
(5) चिकित्सा प्रणाली पर प्रभाव: इच्छामृत्यु को लागू करने से चिकित्सा संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग संभव हो सकता है। इससे गंभीर रूप से बीमार रोगियों को बेहतर चिकित्सा देखभाल उपलब्ध कराई जा सकती है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु एक जटिल नैतिक और कानूनी मुद्दा है। भारत में इसे नियंत्रित रूप में वैध किया गया है, लेकिन इससे जुड़े नैतिक विवाद अभी भी जारी हैं। यह रोगी की गरिमा और उसकी इच्छा का सम्मान करता है, परंतु इसके संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर कानूनी और चिकित्सा दिशानिर्देश आवश्यक हैं।