प्रश्न: उन राज्यों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकार क्षेत्र पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के निहितार्थ पर चर्चा कीजिए जिन्होंने सामान्य सहमति वापस ले ली है। यह भारत के संघीय ढांचे को कैसे प्रभावित करता है?
Discuss the implications of the Supreme Court’s recent ruling on the Central Bureau of Investigation’s (CBI) jurisdiction in states that have withdrawn general consent. How does this affect the federal structure of India?
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट द्वारा पश्चिम बंगाल सरकार के मुकदमे की स्वीकार्यता पर दिया गया निर्णय भारत के संघीय ढांचे को मजबूती प्रदान करेगा। यह सीबीआई जैसे केंद्रीय संस्थानों की कार्यप्रणाली में राज्य की सहमति की संवैधानिक अनिवार्यता को स्पष्ट और संस्थागत रूप से वैध ठहराएगा।
सीबीआई क्षेत्राधिकार पर प्रभाव
(1) राज्य की सहमति की संवैधानिक अनिवार्यता: सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक कोई राज्य अपनी सामान्य सहमति वापस नहीं लेता, तब तक CBI उस राज्य में जांच कर सकती है, लेकिन सहमति वापस लेने के बाद उसे प्रत्येक मामले के लिए राज्य सरकार से विशेष अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
(2) सीबीआई की स्वायत्तता पर व्यावहारिक अंकुश: इस निर्णय के परिणामस्वरूप CBI की स्वायत्तता बाधित होती है क्योंकि इसे अब राजनीतिक दृष्टि से भिन्न विचारधारा रखने वाले राज्यों में कार्य करने हेतु अतिरिक्त प्रशासनिक जटिलताओं से गुजरना होगा, जिससे इसकी कार्यकुशलता पर असर पड़ सकता है।
(3) संघीय जांच प्रक्रिया में असमानता की संभावना: राज्यों के स्तर पर सहमति की स्थिति भिन्न होने से जांच की एकरूपता पर असर पड़ सकता है और एक ही प्रकार के अपराध में विभिन्न राज्यों में CBI की भूमिका असमान हो सकती है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर असंगति उत्पन्न हो सकती है।
(4) लंबित मामलों में विधिक अस्पष्टता की चुनौती: जहां जांच सामान्य सहमति के रहते आरंभ हुई थी और फिर वह सहमति निरस्त कर दी गई, उन मामलों में CBI की निरंतरता को लेकर कानूनी असमंजस उत्पन्न हो सकता है, जिसके लिए विस्तृत न्यायिक व्याख्या की आवश्यकता है।
(5) लोकहित व पारदर्शिता में संभावित गिरावट: राज्य सरकारों की अनुमति के अभाव में कई ऐसे भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितता के मामले हो सकते हैं जो जांच के दायरे से बाहर रह जाएँ, जिससे जनहित और पारदर्शिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
संघीय ढांचे पर प्रभाव
(1) राज्य की विधायी स्वायत्तता को सुदृढ़ता: यह निर्णय राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे अपनी प्रशासनिक संप्रभुता के तहत यह तय कर सकें कि केंद्रीय एजेंसियों को उनके क्षेत्राधिकार में कितनी पहुंच दी जाए, जिससे संघवाद की आत्मा और संवैधानिक सिद्धांतों को बल मिलता है।
(2) सहकारी संघवाद की अपेक्षा प्रतिस्पर्धी संघवाद का उदय: राज्यों द्वारा CBI की पहुँच को सीमित करने की प्रवृत्ति से सहकारी संघवाद की भावना को आघात पहुँच सकता है और केंद्र एवं राज्य के बीच द्वंद्वात्मक संबंधों की संभावनाएं बढ़ सकती हैं, जो समन्वय को बाधित कर सकती हैं।
(3) राजनीतिक दृष्टिकोण से शक्ति संतुलन: राजनीतिक रूप से विपक्षी राज्यों द्वारा सहमति वापस लेना केंद्रीय एजेंसियों के उपयोग को लेकर अविश्वास को उजागर करता है, जो संघीय ढांचे में राजनीतिक शक्ति-संतुलन की संवेदनशीलता और आपसी विश्वास की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
(4) संविधान की सातवीं अनुसूची का पुनः रेखांकन: यह निर्णय संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित विषयों की स्पष्ट सीमाओं को पुनः रेखांकित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि संघ सूची की केंद्रीय एजेंसियां राज्य सूची के क्षेत्रों में बिना वैध अनुमति के हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।
(5) न्यायिक सक्रियता की संघीय भूमिका में वृद्धि: इस निर्णय ने सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को केवल विवाद समाधानकर्ता से ऊपर उठाकर संघीय ढांचे के संरक्षक के रूप में स्थापित किया है, जिससे संघीय संतुलन के मामलों में न्यायपालिका की निर्णायक भूमिका और भी सशक्त हुई है।
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारत में संघीय ढांचे की संवैधानिक आत्मा की पुष्टि करता है। इससे स्पष्ट होता है कि राज्य केवल प्रशासनिक इकाइयाँ नहीं, बल्कि स्वतंत्र संवैधानिक संस्थाएँ हैं, जिनकी सहमति शासन व्यवस्था की आधारशिला है।