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प्रश्न: भारत में मेडिकल छात्रों द्वारा सामना की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। इन मुद्दों को संबोधित करने में वर्तमान नीतियां कितनी प्रभावी हैं? सुधार के उपाय सुझाइए।

Critically examine the mental health challenges faced by medical students in India. How effective are current policies in addressing these issues? Suggest measures for improvement. 

उत्तर: मेडिकल शिक्षा अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण होती है। भारत में, मेडिकल छात्रों को लंबे अध्ययन घंटे, कठोर प्रशिक्षण, परीक्षा का दबाव और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हाल के सर्वेक्षणों में पाया गया कि 27.8% स्नातक और 15.3% स्नातकोत्तर छात्र मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित हैं।

मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां

(1) अत्यधिक शैक्षणिक दबाव: मेडिकल छात्रों को कठिन पाठ्यक्रम और लगातार परीक्षा के दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनमें चिंता और अवसाद बढ़ता है। यह मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और छात्रों की उत्पादकता को प्रभावित करता है।

(2) लंबे कार्य घंटे और थकान: स्नातकोत्तर छात्र अक्सर सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करते हैं, जिससे उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता और मानसिक थकावट होती है। यह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

(3) रैगिंग और उत्पीड़न: कई मेडिकल छात्र वरिष्ठों और शिक्षकों द्वारा मानसिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास प्रभावित होता है। यह मानसिक तनाव को बढ़ाता है और छात्रों के प्रदर्शन को प्रभावित करता है।

(4) वित्तीय तनाव: मेडिकल शिक्षा की उच्च लागत और अपर्याप्त छात्रवृत्ति के कारण कई छात्र आर्थिक दबाव में रहते हैं। वित्तीय अस्थिरता मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

(5) सामाजिक अलगाव: मेडिकल छात्रों को सामाजिक जीवन बनाए रखने में कठिनाई होती है, जिससे वे अकेलापन और अवसाद महसूस करते हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और तनाव को बढ़ाता है।

वर्तमान नीतियों की प्रभावशीलता और सुधार के उपाय

(1) मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली: मेडिकल संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली की कमी है, जिससे छात्रों को पर्याप्त परामर्श सेवाएँ नहीं मिल पातीं। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।

(2) कार्यभार प्रबंधन: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए कार्य घंटे सीमित करने की सिफारिश की है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित रहा है। छात्रों के कार्यभार को संतुलित करने के लिए अधिक प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है।

(3) छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता: छात्रवृत्ति नीतियों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को राहत मिल सके। वित्तीय सहायता बढ़ाने से छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।

(4) रैगिंग और उत्पीड़न रोकथाम: कॉलेजों में रैगिंग विरोधी उपायों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है ताकि छात्रों को सुरक्षित माहौल मिल सके। मानसिक उत्पीड़न को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए।

(5) मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: मेडिकल संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि छात्र अपनी मानसिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझ सकें। मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

भारत में मेडिकल छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां गंभीर हैं और इन्हें संबोधित करने के लिए प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। वर्तमान नीतियां सीमित प्रभाव डाल रही हैं, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली को मजबूत करने, कार्यभार प्रबंधन में सुधार करने और वित्तीय सहायता बढ़ाने की आवश्यकता है।

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