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प्रश्न: परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाने में भारतीय लोक प्रशासन प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। लेटरल एंट्री कैसे एक समाधान हो सकती है और इसकी सीमाएं क्या हैं?

Critically examine the challenges faced by the Indian public administration system in adopting an outcomes-based approach. How can lateral entry be a solution, and what are its limitations?

उत्तर: भारतीय लोक प्रशासन प्रणाली परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाकर प्रभावशीलता, जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाने का प्रयास कर रही है। यह मॉडल नीति कार्यान्वयन को अधिक व्यावहारिक और प्रभावी बनाता है। हालांकि, प्रशासनिक जड़ता, तकनीकी सीमाएं और संस्थागत समन्वय की कमी जैसी चुनौतियां इस प्रक्रिया को बाधित कर सकती हैं।

परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाने में प्रमुख चुनौतियां 

(1) नौकरशाही बाधाएं: भारतीय लोक प्रशासन की जटिल प्रक्रियाएं और पारंपरिक संरचना नीति कार्यान्वयन की गति को प्रभावित करती हैं। निर्णय लेने में अनावश्यक विलंब सुशासन की प्रभावशीलता को कम करता है। इस समस्या को दूर करने के लिए प्रशासनिक लचीलापन और सरलीकरण आवश्यक है।

(2) उत्तरदायित्व की कमी: नौकरशाही में पारदर्शिता और प्रदर्शन मूल्यांकन की स्पष्ट प्रणाली का अभाव कार्यकुशलता को प्रभावित करता है। अधिकारियों पर कोई प्रभावी निगरानी नहीं होने से जवाबदेही कमजोर हो जाती है। इससे नीति कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है और प्रभावी प्रशासन की संभावना सीमित होती है।

(3) तकनीकी सीमाएं: ई-गवर्नेंस और डिजिटल परिवर्तन में धीमी प्रगति कार्यान्वयन की गति और गुणवत्ता को प्रभावित करती है। डेटा प्रबंधन और तकनीकी क्षमताओं के अभाव से प्रशासनिक कार्यों की दक्षता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसे सुधारने के लिए व्यापक तकनीकी निवेश और डिजिटलीकरण आवश्यक है।

(4) संस्थागत समन्वय की कमी: विभिन्न सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी से निर्णय प्रक्रिया और क्रियान्वयन प्रभावित होता है। इससे योजनाएं समय पर लागू नहीं हो पातीं और नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने में कठिनाई होती है। प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए समन्वय प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।

(5) जनभागीदारी का अभाव: नीति-निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों की सीमित भागीदारी प्रशासनिक निर्णयों की प्रभावशीलता को कम करती है। इससे नीतियों में व्यवहारिकता और समावेशिता की कमी बनी रहती है। अधिक संवाद और सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।

समाधान के रूप में लेटरल एंट्री

(1) विशेषज्ञता की वृद्धि: बाहरी विशेषज्ञों की नियुक्ति से नीति-निर्माण अधिक व्यावहारिक और कुशल बन सकता है। विभिन्न क्षेत्रों से आए विशेषज्ञ प्रशासन को अधिक नवीन और तकनीकी रूप से सक्षम बना सकते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया में सुधार आएगा।

(2) प्रशासनिक दक्षता: लेटरल एंट्री से नए विचारों और आधुनिक कार्यशैली को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे नीति कार्यान्वयन अधिक प्रभावी और समयबद्ध हो सकता है। बाहरी पेशेवरों के अनुभव प्रशासनिक प्रणाली को गतिशील बना सकते हैं।

(3) उत्तरदायित्व में सुधार: बाहरी विशेषज्ञों के आने से प्रदर्शन मूल्यांकन की प्रक्रिया पारदर्शी हो सकती है। इससे प्रशासनिक जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा और कार्यप्रणाली में निष्पक्षता सुनिश्चित होगी। पारदर्शिता नीति-निर्माण को अधिक प्रभावी बनाएगी।

(4) संस्थागत समन्वय: लेटरल एंट्री से विभिन्न विभागों में बेहतर तालमेल स्थापित किया जा सकता है। इससे नीति-निर्माण और कार्यान्वयन अधिक प्रभावी होगा। प्रशासन में लचीलापन और समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि निर्णय तेजी से लिए जा सकें।

(5) जन केंद्रित नीति-निर्माण: बाहरी विशेषज्ञों के आने से नागरिकों की वास्तविक आवश्यकताओं पर आधारित निर्णय लिए जा सकते हैं। इससे प्रशासन अधिक संवेदनशील और व्यवहारिक बन सकता है। आधुनिक दृष्टिकोण से नीतियों की प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।

लेटरल एंट्री की सीमाएं

(1) नौकरशाही प्रतिरोध: पारंपरिक प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बाहरी विशेषज्ञों को स्वीकार करने में कठिनाई होती है। इससे कार्यशैली में असहमति उत्पन्न हो सकती है और प्रशासनिक सुधार प्रक्रिया धीमी हो सकती है।

(2) अल्पकालिक दृष्टिकोण: लेटरल एंट्री के अंतर्गत नियुक्त व्यक्तियों की सीमित कार्यावधि होती है। इससे दीर्घकालिक प्रशासनिक रणनीतियां प्रभावित होती हैं और नीति कार्यान्वयन में निरंतरता की कमी हो सकती है।

(3) उत्तरदायित्व और पारदर्शिता के मुद्दे: बाहरी विशेषज्ञों की भर्ती में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इससे प्रशासनिक निर्णयों की गुणवत्ता और निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ सकता है।

(4) संस्थानिक समायोजन: बाहरी पेशेवरों का पारंपरिक नौकरशाही ढांचे में समायोजन कठिन हो सकता है। इससे प्रशासनिक असंगति उत्पन्न हो सकती है और नीति कार्यान्वयन की प्रभावशीलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

(5) राजनीतिक हस्तक्षेप का खतरा: लेटरल एंट्री प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका बनी रहती है। इससे नियुक्तियों की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है और प्रशासनिक निर्णयों में भेदभाव की संभावना बढ़ सकती है।

भारतीय लोक प्रशासन प्रणाली को परिणाम-आधारित दृष्टिकोण अपनाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेटरल एंट्री एक संभावित समाधान हो सकती है, लेकिन इसकी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए पारदर्शी और उत्तरदायी व्यवस्था आवश्यक है। उचित नीति और संतुलित सुधारों से प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

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