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प्रश्न: समग्र राष्ट्रीय प्रगति के बावजूद भारतीय राज्यों के बीच लगातार सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के कारणों का विश्लेषण कीजिए। इन असमानताओं को दूर करने के लिए कौन-से नीतिगत उपाय लागू किए जा सकते हैं?

Analyze the reasons behind the persistent socio-economic disparities among Indian states despite overall national progress. What policy measures can be implemented to address these disparities?

उत्तर: भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि के बावजूद राज्यों के मध्य सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ एक संरचनात्मक एवं ऐतिहासिक चुनौती बनी हुई हैं। ये विषमताएँ केवल भौगोलिक स्थितियों का परिणाम नहीं, बल्कि औपनिवेशिक विरासत, असमान नीति हस्तक्षेप, संस्थागत अक्षमता और संसाधनों की केंद्रीकृत प्रवृत्ति से भी पोषित हैं।

भारतीय राज्यों में लगातार सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के पीछे कारण

(1) ऐतिहासिक उपेक्षा और औपनिवेशिक नीतियाँ: औपनिवेशिक शासन के दौरान कुछ क्षेत्रों को रणनीतिक या आर्थिक लाभ के आधार पर विकसित किया गया, जबकि अन्य को उपेक्षित रखा गया। स्वतंत्रता के पश्चात भी यह ऐतिहासिक असंतुलन नीति निर्माण में पूरी तरह नहीं सुधारा गया, जिससे दीर्घकालिक असमानता बनी रही।

(2) केंद्रीकृत योजना और संसाधन आवंटन: योजना आयोग और बाद में नीति आयोग द्वारा संसाधनों का केंद्रीकृत तरीके से आवंटन हुआ, जिसमें राजनीतिक प्रभाव, प्रशासनिक दक्षता और क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ प्रमुख कारक बने। इससे कुछ राज्यों को विशेष लाभ मिला और अन्य पिछड़ते चले गए।

(3) निवेश और औद्योगीकरण: जिन राज्यों में आधारभूत ढांचा, स्थिर शासन और बेहतर व्यापार माहौल था, वहाँ निजी और सार्वजनिक निवेश अधिक आकर्षित हुआ। इसके विपरीत, प्रशासनिक अड़चनों और अविकसित बुनियादी ढांचे वाले राज्य औद्योगीकरण की दौड़ में पिछड़ गए, जिससे क्षेत्रीय विषमता बढ़ी।

(4) सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: जाति, लिंग, शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता जैसे कारकों ने विकास की गति को प्रभावित किया। जिन राज्यों में सामाजिक सशक्तिकरण और शिक्षा की पहुँच बेहतर थी, वहाँ मानव संसाधन विकास तेजी से हुआ; अन्य राज्यों में यह प्रक्रिया धीमी रही।

(5) बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी: सड़कों, रेलमार्गों, बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में असमान निवेश और योजना के कारण कई राज्य मुख्य आर्थिक धारा से कटे रहे। इससे व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सीमित रही और आर्थिक विभाजन बढ़ता गया।

असमानताओं को दूर करने के लिए नीतिगत उपाय

(1) संतुलित क्षेत्रीय विकास: राज्यों के बीच असमानता दूर करने हेतु आवश्यक है कि संसाधनों का आवंटन आकांक्षी जिलों एवं पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता देकर किया जाए। क्षेत्रीय योजना, उद्देश्य-आधारित व्यय और निष्पादन आधारित आवंटन से समतामूलक विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

(2) बुनियादी ढांचे का विकास: अविकसित राज्यों में परिवहन, बिजली, सिंचाई और डिजिटल नेटवर्क में निवेश करने से न केवल उत्पादकता में वृद्धि होगी बल्कि यह निजी निवेश को आकर्षित करेगा। इससे क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता और रोजगार के अवसरों में भी संतुलन आएगा।

(3) लक्षित कल्याण कार्यक्रम: हाशिए के क्षेत्रों की भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विशिष्टताओं को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और सामाजिक सुरक्षा पर केंद्रित कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, ताकि असमानता की जड़ पर प्रभावी चोट की जा सके और समावेशी विकास सुनिश्चित हो।

(4) औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना: पिछड़े राज्यों को कर में छूट, भूमि अधिग्रहण में सुविधा, पूंजी सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन देकर वहाँ उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में विविधता आएगी और उत्पादन केंद्रित विकास से रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

(5) शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ावा देना: प्राथमिक से उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण को जनसांख्यिकीय लाभांश से जोड़ना आवश्यक है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षक, प्रशिक्षक और आधुनिक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराकर पिछड़े क्षेत्रों में मानव पूंजी निर्माण किया जा सकता है, जिससे दीर्घकालिक असमानता घटेगी।

सार्थक क्षेत्रीय समानता हेतु नीति निर्माताओं को संघीय संरचना में वास्तविक वित्तीय विकेंद्रीकरण, मानव पूंजी निवेश और क्षेत्रीय विशेषताओं पर आधारित रणनीतिक विकास को प्राथमिकता देनी होगी। जब तक यह संतुलन स्थापित नहीं होता, भारत का सतत और समावेशी विकास अधूरा बना रहेगा।

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