एक वैकल्पिक विषय के रूप में हमें ‘इतिहास’ का चयन क्यों करना चाहिए? |
इतिहास को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने के कई कारण हैं। यह विषय एक सुवोध और सीमित पाठ्यक्रम के साथ स्पष्ट संरचना प्रदान करता है, जो अध्ययन को व्यवस्थित बनाता है। इसके अलावा, इतिहास में विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच की आवश्यकता होती है, जो अन्य विषयों के लिए भी लाभकारी है। ऐतिहासिक घटनाओं का व्यापक ज्ञान सामान्य अध्ययन में भी मदद करता है और विविधता से भरा होता है।
विषय की प्रकृति ‘विशेषीकृत’ न होकर ‘सामान्यीकृत’
इतिहास विषय की प्रकृति ‘विशेषीकृत’ न होकर ‘सामान्यीकृत’ है, जिसका अर्थ है कि इसका पाठ्यक्रम व्यापक और सुव्यवस्थित है। यह पाठ्यक्रम ‘परिवर्तन’ और ‘विकास’ का एक समन्वय है, जो इसे एक स्पष्ट और सुवोध विषय बनाता है। इतिहास का पाठ्यक्रम, अन्य विषयों की तुलना में, अधिक स्पष्टता प्रदान करता है, और इसलिए यह धारणा कि इसका पाठ्यक्रम बहुत बड़ा है, वास्तविकता से मेल नहीं खाती।
वास्तव में, इतिहास का पाठ्यक्रम विभिन्न हिस्सों में विभाजित किया गया है, जैसे प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत, आधुनिक भारत (स्वतंत्रता-पूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात), कला और संस्कृति, और विश्व इतिहास। ये विभाजन अध्ययन को आसान बनाते हैं और पाठ्यक्रम को संक्षेप में समझने में मदद करते हैं। हर खंड को अलग से समझा जा सकता है, जिससे अध्ययन प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित और प्रभावी होती है।
इतिहास विषय के लिए आवश्यक पुस्तकें भी सीमित और संकलित होती हैं। टॉपर्स की सलाह है कि कई पुस्तकें जो ‘सामान्य अध्ययन’ के लिए पढ़ी जाती हैं, वे ‘वैकल्पिक विषय’ के लिए भी काफी उपयोगी होती हैं, केवल कुछ विशेष टॉपिक्स को छोड़कर। इससे यह साबित होता है कि इतिहास को एक सुसंगत दृष्टिकोण से अध्ययन करके बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, और यह विषय अध्ययन में एक प्रबंधनीय और लाभकारी विकल्प बन जाता है।
अध्ययन सामग्री (मानक पुस्तकें) आसानी से उपलब्ध
इतिहास वैकल्पिक विषय के अध्ययन के लिए मानक पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हैं, जो हिन्दी माध्यम से UPSC CSE की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए एक लाभकारी स्थिति है। अक्सर यह माना जाता है कि हिन्दी माध्यम में पुस्तकों की उपलब्धता एक चुनौती होती है, लेकिन इतिहास के मामले में यह स्थिति अलग है। भारतीय इतिहास पर आधारित पुस्तकें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, जो परीक्षा की तैयारी को सुगम बनाती हैं।
प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत के लिए मानक पुस्तकें जैसे कि उपिन्दर सिंह और रामशरण शर्मा (प्राचीन भारत), सतीश चन्द्र (मध्यकालीन भारत), बिपिन चन्द्र और शेखर बंद्योपाध्याय (आधुनिक भारत) ने इतिहास की जटिलताओं को सरल और सुसंगत तरीके से प्रस्तुत किया है। इन पुस्तकों का अध्ययन कर अभ्यर्थी इतिहास के विभिन्न कालखंडों को समझ सकते हैं और परीक्षा में बेहतर तैयारी कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, विश्व इतिहास के लिए अर्जुन देव की पुस्तकें भी अभ्यर्थियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन लेखक और पुस्तकों की उपलब्धता से अभ्यर्थियों को एक विस्तृत और विविध दृष्टिकोण मिलता है, जो उनके अध्ययन को समृद्ध और प्रभावी बनाता है। इन संसाधनों के लिए अभ्यर्थियों को धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि ये उनके परीक्षा के प्रति दृष्टिकोण और तैयारी को आसान बनाते हैं।
‘अंकदायी’ एवं ‘चयन’ में सहायक
सिविल सेवा परीक्षा के लिए इतिहास वैकल्पिक विषय को आमतौर पर ‘अंकदायी’ और ‘चयन’ में सहायक माना जाता है। हालांकि हमने ‘अंक’ को तीसरे क्रम पर रखा है, यह एक महत्वपूर्ण मानदंड है क्योंकि परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करना प्राथमिक उद्देश्य होता है। एक ऐसा विषय जो परीक्षा की चयन प्रक्रिया और सही मार्गदर्शन के अनुसार प्रभावी हो, आमतौर पर अंक के मामले में भी सफल होता है।
इतिहास की व्यापक और स्पष्ट संरचना, इसकी अध्ययन सामग्री की उपलब्धता, और मानक पुस्तकों के कारण, यह विषय आमतौर पर अंक प्राप्त करने में सक्षम होता है। पिछले वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि इतिहास विषय में अधिकांश सफल अभ्यर्थियों ने 300 से अधिक अंक प्राप्त किए हैं, जो इस विषय की अंकदायिता को साबित करता है।
इसका अर्थ है कि इतिहास वैकल्पिक विषय की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए एक मजबूत संभावना होती है कि वे अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। इससे न केवल उनके चयन की संभावना बढ़ती है बल्कि उनकी तैयारी की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। इतिहास के प्रति इस दृष्टिकोण से, अभ्यर्थियों को इस विषय के चयन पर गर्व करना चाहिए और इसकी तैयारी को गंभीरता से लेना चाहिए।
किसी विशेष ‘दक्षता’ या ‘डिग्री’ की आवश्यकता नहीं
सिविल सेवा परीक्षा में इतिहास वैकल्पिक विषय का एक बड़ा लाभ यह है कि इसके लिए किसी विशेष ‘दक्षता’ या ‘डिग्री’ की आवश्यकता नहीं है। इतिहास एक ऐसा विषय है जिसे विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले अभ्यर्थी आसानी से समझ सकते हैं और इसकी तैयारी कर सकते हैं। चाहे आप मानविकी, विज्ञान, या इंजीनियरिंग से हों, इतिहास का अध्ययन और इसका वैकल्पिक विषय के रूप में चयन आपके लिए खुला है।
इतिहास की सामग्री और पाठ्यक्रम की संरचना ऐसी है कि यह विभिन्न शैक्षिक पृष्ठभूमियों के अभ्यर्थियों को अपनी तैयारी में सफलता प्राप्त करने की संभावना देती है। यह विषय विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण और विश्लेषण की क्षमता को प्रोत्साहित करता है, जिससे यह उन लोगों के लिए भी उपयुक्त है जिनकी पृष्ठभूमि इतिहास से संबंधित नहीं है।
इसके अतिरिक्त, इतिहास के वैकल्पिक विषय के लिए उपलब्ध संसाधन और मार्गदर्शन विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले अभ्यर्थियों को एक समान अवसर प्रदान करते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी प्रकार के अभ्यर्थी इस विषय में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, बशर्ते वे नियमित और समर्पित तैयारी करें। इस प्रकार, इतिहास एक लचीला और सुलभ विकल्प बन जाता है जो विविध पृष्ठभूमि वाले अभ्यर्थियों के लिए उपयुक्त है।
‘सामान्य अध्ययन’ एवं ‘निबंध’ में सहायक
यह मुख्य परीक्षा के ‘सामान्य अध्ययन’ एवं ‘निबंध’ प्रश्नपत्र में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से योगदान करता है। ‘मुख्य’ परीक्षा के सामान्य अध्ययन-I में कम-से-कम 75 अंक (6 प्रश्न) एवं ‘प्रारंभिक’ परीक्षा में 30 अंक (15 प्रश्न) ‘इतिहास’ खंड से होते हैं। इतना ही नहीं राज्य सिविल सेवा परीक्षा के ‘सामान्य अध्ययन’ से संबंधित प्रश्नपत्र में भी इतिहास का अत्यधिक महत्व है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की सभी सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षाओं में सामान्य अध्ययन का प्रथम प्रश्नपत्र ‘इतिहास’ खंड से ही आंरभ होता है।
इसी प्रकार अभ्यर्थी ‘निबंध’ प्रश्नपत्र में ‘विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों’ (PYQs) पर विचार कर सकते हैं; जैसे- “इतिहास वैज्ञानिक मनुष्य के रूमानी मनुष्य पर विजय हासिल करने का एक सिलसिला है” (CSE-2022) और “इतिहास स्वयं को दोहराता है, पहली बार एक त्रासदी के रूप में, दूसरी बार एक प्रहसन के रूप में” (CSE-2021) आदि। ‘इतिहास’ (वैकल्पिक) विषय के अभ्यर्थी इस प्रकार के प्रश्नों में बड़ी ही सहजता से 120+ अंक प्राप्त कर सकते हैं यदि उन्हें ऐतिहासिक ‘परिवर्तन’ (Change) और ‘विकास’ (Evolution) की मूलभूत समझ है।
इसके अलावा इतिहास विषय का अप्रत्यक्ष योगदान क्या है, यह कुछ ही अभ्यर्थी समझ पाते हैं। वस्तुतः सामान्य अध्ययन की आधारभूत तैयारी इतिहास के अध्ययन क्रम में आसानी से विकसित हो जाती है। इस विषय का अध्ययन परिवर्तन की समझ विकसित करता है। इस समझ का उपयोग कर भारतीय एवं विश्व अर्थव्यवस्था के क्रमिक विकास, भारतीय संविधान का निर्माण तथा उसका विकास, भारत एवं विश्व के संबंध, स्वतंत्रता के काल से लेकर उत्तरवर्ती चरण तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास, आदि मुद्दों को आसानी से समझा जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि ‘विश्व इतिहास’ के अध्ययन के बिना ‘अंतर्राष्ट्रीय संबंध’ (IR) को नहीं समझा जा सकता। इसके अलावा भारतीय संस्कृति की समस्याओं को भी आन्तरिक सुरक्षा से जोड़कर देखा जा सकता है। निष्कर्षतः अन्य मानविकी विषयों के समसामयिक मुद्दों को समझने के लिए इतिहास का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
सर्वाधिक लोकप्रिय एवं विश्वसनीय मार्गदर्शक
वैश्वीकरण और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी प्रतियोगी परीक्षा के इस दौर में, एक सटीक और विश्वसनीय मार्गदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका है। खासकर सिविल सेवा परीक्षा जैसे कठिन और व्यापक परीक्षणों के लिए, सही मार्गदर्शन और परामर्श अभ्यर्थियों को सटीक दिशा प्रदान करता है। यह उन्हें परीक्षा के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है और एक प्रभावी तैयारी योजना तैयार करने में सहायक होता है।
उचित मार्गदर्शन से अभ्यर्थियों की प्रतिभा और क्षमताओं को पहचाना जा सकता है, साथ ही उनके अवांछनीय लक्षणों को दूर किया जा सकता है। इससे अभ्यर्थी अपनी कमजोरियों को सुधार सकते हैं और अपनी ताकत को सही दिशा में उपयोग कर सकते हैं। इससे न केवल उनकी तैयारी बेहतर होती है, बल्कि आत्म-संवर्धन और आत्म-मूल्यांकन की क्षमता भी विकसित होती है।
इसके अतिरिक्त, मार्गदर्शन एक आशावादी दृष्टिकोण विकसित करने में भी सहायक होता है। परीक्षा की तैयारी के दौरान मानसिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है, और सही परामर्श से अभ्यर्थी आत्म-विश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रख सकते हैं। यह तनाव कम करने और परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलती है।