इतिहास वैकल्पिक विषय की तैयारी हेतु सही रणनीति क्या होनी चाहिए? |
विषय की मूल मांग को समझना
किसी भी विषय के अध्ययन से पूर्व उसकी ‘मूल मांग को समझना’ (परीक्षा के दृष्टिकोण से) अत्यधिक आवश्यक है। इतिहास विषय की मूल मांग है- ‘परिवर्तन’ एवं ‘विकास’ का समन्वय। ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ (NCF), 2005 में यह स्पष्ट किया गया है कि “हम अपने आसपास के समाज एवं परिवेश को समझें तथा यह ज्ञात करने का प्रयास करें कि ये कहां से आरंभ होकर कैसे-कैसे विकसित हुए।” एक बार यह दृष्टि विकसित होने के बाद विषय में स्वयं ही रूचि बढ़ जाती है।
उपर्युक्त कथन से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि ‘परिवर्तन’ की समझ विकसित करने के लिए हम अचानक कहीं से भी टॅापिक का अध्ययन आरंभ नहीं कर सकते बल्कि हमें पहले अध्याय से आरंभ करके ही उसे विकासक्रम की ओर ले जाना होगा।
परिवर्तन को रेखांकित करना
एक बार परिवर्तन की समझ विकसित होने के बाद अभ्यर्थी को स्वयं ज्ञात हो जाता है कि जिन तथ्यों का वे अत्यधिक संग्रह कर रहे थे, वे केवल उदाहरण हैं, इतिहास का अध्ययन नहीं। इतिहास के अध्ययन का अर्थ है- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आदि में परिवर्तन के तत्वों को रेखांकित करना।
सही कालानुक्रम में अध्ययन करना
इतिहास में कालानुक्रम से तात्पर्य घटनाओं को उनके घटित होने के क्रम में व्यवस्थित करने से है। यह इस बात का अध्ययन है कि ऐतिहासिक घटनाओं के संबंध में समय को कैसे व्यवस्थित और विभाजित किया जाता है। ज्ञातव्य है कि इतिहासकारों द्वारा घटनाओं को कालानुक्रमिक क्रम में रखने के लिए समयरेखा का उपयोग किया जाता है। कालक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घटनाओं के घटित होने का सटीक क्रम हमें उन घटनाओं की पृष्ठभूमि, कारण, महत्व एवं प्रभाव को समझने में मदद करता है। साथ ही इससे आरंभ से अंत तक उस विशेष युग की सम्पूर्ण तस्वीर स्पष्ट होती है। इसलिए इतिहास के अभ्यर्थियों को एक सही कालानुक्रम में अध्ययन करने की सलाह दी जाती है।
इतिहास-लेखन संबंधी दृष्टिकोण की समझ
इतिहास-लेखन संबंधी दृष्टिकोण से तात्पर्य है- किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर कुछ प्रमुख विद्वानों के विचारों में अन्तर को समझना। यदि हम विगत वर्ष के प्रश्नों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इतिहास-लेखन का मुद्दा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में विद्यमान है। उदाहरण के लिए, प्रत्यक्ष रूप के अंतर्गत “क्या देशभक्ति ही महाराणा प्रताप का एकमात्र अपराध था?” यहाँ हमें भिन्न-भिन्न विचारों के संदर्भ में प्रश्न को समझना होगा। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष रूप के अंतर्गत आप “बौद्ध धर्म, नगरीकरण तथा तत्कालीन राज्य-निर्माण” के परस्पर संबंधों पर विचार कर सकते हैं।
अतीत एवं वर्तमान के बीच संबंध
हम केवल अतीत को जानने के लिए इतिहास का अध्ययन नहीं करते बल्कि इसलिए भी करते हैं ताकि इसके माध्यम से वर्तमान की सही व्याख्या कर सकें तथा भविष्य का संकेत पा सकें। इसलिए इतिहास के किसी भी टॉपिक पर लिखते समय (यदि आवश्यक हो) अभ्यर्थियों को भविष्य की ओर (अर्थात आगे की राह) भी संकेत करना चाहिए, इससे उत्तर की गुणवता में नि:संदेह वृद्धि होगी।
उत्तर-लेखन में ‘मूल्य संवर्धन’ का प्रयोग
इतिहास सहित सामान्य अध्ययन के किसी भी विषय में उच्चतम अंक की प्राप्ति हेतु अभ्यर्थियों को उस विषय पर ‘समसामयिक दृष्टि से सोचना’ (प्रश्न की मांग के अनुसार) चाहिए। इसके दो प्रमुख लाभ हैं- प्रथम, कई प्रकार से ये दृष्टिकोण प्रश्नों के स्वरूप को प्रभावित करते हैं। द्वितीय, यदि उत्तर-लेखन में उसे स्थान दिया जाता है (मूल्य संवर्धन के रूप में) तो इससे उत्तर की गुणवत्ता बेहतर होती है तथा उच्चतम अंक की संभावना रहती है।
उत्तर-लेखन
उत्तर-लेखन शून्य से प्रकट नहीं होता बल्कि यह ज्ञान एवं समझ तथा निरंतर अभ्यास से विकसित होता है। उत्तर-पुस्तिका की जांच करने वाले ‘मूल्यांकनकर्ता’ (Copy Evaluator) को इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं होती कि उत्तर-पुस्तिका किस अभ्यर्थी की है, उसने कितनी गंभीरता से पढ़ाई की है, उसकी वर्तमान परिस्थितियां कैसी हैं, आदि।
‘मूल्यांकनकर्ता’ के पास अभ्यर्थी के मूल्यांकन का एक ही आधार होता है और वह यह कि अभ्यर्थी ने अपनी उत्तर-पुस्तिका में किस स्तर के उत्तर लिखे हैं? यदि आपके उत्तर प्रभावी होंगे तो ‘मूल्यांकनकर्ता’ उच्च अंक देने के लिए मजबूर हो जाएगा और यदि उत्तरों में दम नहीं है तो फिर आपने चाहे जितनी भी मेहनत की हो, उसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलेगा।
इतिहास (वैकल्पिक) विषय में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति ‘वर्णनात्मक’ (Descriptive) होती है जिसमें प्रश्नों के उत्तर को निर्धारित शब्दों [अर्थात 10 अंक (150 शब्द, 2 पेज), 15 अंक (250 शब्द, 3 पेज) और 20 अंक (300 शब्द, 4 पेज)] में उत्तर-पुस्तिका में लिखना होता है जिसके लिए सटीक अध्ययन सामग्री या स्वयं के बनाए गए शार्ट नोट्स, प्रभावी उत्तर-लेखन, टेस्ट सीरीज़ का अभ्यास, समय प्रबंधन, परीक्षा का दबाव, आदि हेतु सही रणनीति की आवश्यकता होती है।
उत्तर-लेखन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को चार चरणों में विभाजित करके समझा जा सकता है- (i) प्रश्न को समझना तथा उसकी मांग के अनुसार उसे कई टुकड़ों में बांटना, (ii) उत्तर की रूपरेखा तैयार करना, (iii) उत्तर लिखना, (iv) उत्तर के प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाना।
ज्ञातव्य है कि सिविल सेवा परीक्षा में ‘मुख्य परीक्षा’ की भूमिका लगभग 90% होती है जिसमें लेखन शैली एक प्रमुख भूमिका निभाती है। वर्तमान ट्रेंड एवं परीक्षा की प्रकृति को देखते हुए UPSC मुख्य परीक्षा में एक गुणवत्तायुक्त उत्तर-लेखन शैली अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु ‘मेन्स टेस्ट सीरीज़’ निःसंदेह सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम है क्योंकि इससे परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने की सही समझ विकसित होती है।
चूंकि लेखन शैली को निरंतर अभ्यास के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है इसलिए सभी अभ्यर्थियों को अधिकतम अंक की प्राप्ति हेतु विगत वर्षों के प्रश्न एवं अभ्यास प्रश्न अवश्य हल करना चाहिए क्योंकि इनका एकमात्र उद्देश्य अभ्यर्थियों की छिपी हुई प्रतिभा को निखारना है। साथ ही, मूल्यवान फीडबैक के माध्यम से आपके लेखन में गुणात्मक सुधार करना है।