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उत्तरकालीन मुगलों की प्रमुख कमजोरियों और उनके पतन के लिए उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण: 

(i) उत्तरकालीन मुगल साम्राज्य के विस्तार का संक्षिप्त रूप में वर्णन कीजिए।

(ii) उन प्रमुख कमजोरियों और कारणों को सूचीबद्ध कीजिए जिनके कारण उत्तरकालीन मुगलों का पतन हुआ।

(iii) औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

परिचय: 

उत्तर: मुगल साम्राज्य लगभग तीन शताब्दियों तक भारत के एक बड़े भाग पर फैला हुआ था। उत्तरकालीन मुगलों का शासनकाल 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुर शाह प्रथम के राज्याभिषेक के साथ प्रारंभ हुआ। अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध से मुगलों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में तीव्र गिरावट आई।

यह गिरावट कुछ कमजोरियों और कारणों से प्रेरित थी, जिन्हें निम्नलिखित रूपों में वर्णित किया जा सकता है:

1. कमजोर उत्तराधिकारी:

मुगलों ने उत्तराधिकार के किसी भी नियम का पालन नहीं किया जिसके कारण दावेदारों के मध्य उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुए। अमीरों ने किसी न किसी दावेदार के साथ जुड़कर अपनी शक्ति में वृद्धि की।

इसके अतिरिक्त औरंगजेब के उत्तराधिकारी कमजोर, अकुशल सेनापति थे और वे गुटबंदी करने वाले अमीरों की साज़िशों एवं षड्यंत्रों के शिकार हो गए।

2. मुगल कुलीनता का पतन:

उत्तरकालीन मुगल सम्राटों के चरित्र में गिरावट के साथ, अमीरों के चरित्र में भी गिरावट आई। परिणामतः, शासक वर्ग पर शारीरिक, नैतिक और बौद्धिक पतन हावी हो गया।

3. औरंगजेब द्वारा हिंदुओं का धार्मिक उत्पीड़न:

औरंगजेब की नीतियां लोगों का समर्थन प्राप्त करने में विफल रहीं। उसने राजपूतों का समर्थन खो दिया जिन्होंने मुगल साम्राज्य की सुदृढ़ता में बहुत अधिक योगदान दिया था।

सिखों, मराठों, जाटों और राजपूतों के साथ युद्धों ने मुगल साम्राज्य के संसाधनों को समाप्त कर दिया था।

4. मुग़ल सेना का नैतिक पतन:

जैसे-जैसे उत्तरकालीन मुग़ल शासकों के प्राधिकार कमजोर होते गए, साम्राज्य के बड़े अमीरों अथवा अधिकारियों को सेना को बनाए रखने के लिए जो जागीर सौंपी गई थी, उसे उन्होंने अपनी वंशानुगत संपत्ति में परिवर्तित करना प्रारंभ कर दिया।

इसने सम्राट को अपने अधिकार का दावा करने हेतु व्यक्तिगत सैनिकों की एक मजबूत सेना के अभाव में अक्षम बना दिया।

5. आर्थिक दिवालियापन:

शाहजहाँ के भवन-निर्माण संबंधी उत्साह ने राजकोष को कमजोर कर दिया था।

इसके अतिरिक्त, औरंगजेब के दक्षिण में लंबे समय तक चलने वाले युद्ध ने राजकोष को और अधिक खाली कर दिया।

चूंकि राज्य की कर मांग को बढ़ाकर उपज का आधा भाग कर दिया गया था, इसलिए काश्तकारों को खेती करने के लिए विवश किया जाने लगा।

औरंगजेब और उसके उत्तराधिकारी सत्ता प्राप्त करने और इसे बनाए रखने के लिए अनेक युद्ध लड़े। उनके समय में मुगल सरकार पर दिवालियापन की स्थिति स्पष्ट दिखाई देने लगी थी।

6. विदेशी आक्रमण:

विदेशी आक्रमणों ने मुगलों की बची हुई शक्ति को भी समाप्त कर दिया और विघटन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया। नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप धन की और अधिक निकासी हुई। 

7. साम्राज्य का आकार और क्षेत्रीय शक्तियों से चुनौती:

मुगल साम्राज्य इतना अधिक विशाल हो गया था कि किसी भी शासक द्वारा एक केंद्र अर्थात् दिल्ली से इसे नियंत्रित करना कठिन था।

प्रारंभिक मुगल शासक कुशल प्रशासक थे तथा मंत्रियों एवं सेना पर उनका प्रत्यक्ष नियंत्रण था किंतु उत्तरकालीन मुगल शासक कुशल प्रशासक नहीं थे। परिणामस्वरूप, सुदूरवर्ती प्रांत इनसे स्वतंत्र हो गए। इन स्वतंत्र राज्यों के उदय ने मुगल साम्राज्य के विघटन को बढ़ावा दिया।

8. औरंगजेब की दक्कन नीति:

औरंगजेब की दक्कन नीति ने पुनरूद्धार से पूर्व ही मुगल प्रतिष्ठा को क्षीण कर दिया। उसने बीजापुर और गोलकुंडा के शिया साम्राज्यों को नष्ट कर दिया और मराठों के विरुद्ध लंबे समय तक चलने वाला एक अंतहीन युद्ध छेड़ दिया था।

उत्तर भारत में हिंदू पहले से ही औरंगजेब की धार्मिक उत्पीड़न की नीति से अलग-थलग हो गए थे। औरंगजेब की मृत्यु के 31 वर्षों के भीतर, इसके उत्तराधिकारियों को सिखों, जाटों, बुंदेलों, राठौरों, कछवाहों के साथ युद्ध करना पड़ा।

उत्तर भारत से सम्राट के लंबे समय तक अनुपस्थित होने के कारण कई प्रांतीय सूबेदार स्वतंत्र हो गए। 

9. जागीरदारी संकट:

दक्कन और मराठा क्षेत्र में साम्राज्य के विस्तार के कारण अमीरों की संख्या में अचानक वृद्धि ने जागीर व्यवस्था की कार्य पद्धति में संकट उत्पन्न कर दिया।

अमीरों में बेहतर जागीरों के लिए प्रतिस्पर्धा होती थी, जो दक्षिण के अमीरों के प्रवेश के कारण दुष्प्राप्य होती जा रही थीं। इससे उस राजनीतिक संरचना में ह्रास हुआ जो काफी हद तक जागीरदारी व्यवस्था पर आधारित थी।

निष्कर्ष:

औरंगजेब की मृत्यु के समय भारत में मुगलों का साम्राज्य सबसे विस्तृत था। फिर भी, इसकी मृत्यु के लगभग पचास वर्ष पश्चात् मुगल साम्राज्य विघटित हो गया।

उपर्युक्त कारणों के आलोक में, इस अवनति के लिए इसके सांस्कृतिक चरित्र और प्रशासनिक नीतियों में अंतर्निहित संस्थानों एवं प्रणालियों को जिम्मेदार माना जा सकता है।

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