प्रश्न: भारत का विभाजन उन समुदायों का हिंसक अलगाव था जो अब तक एक साथ रहते थे। इस कथन के आलोक में, विभाजन की प्रक्रिया में शरणार्थियों द्वारा सामना की गई कठिनाइयों पर चर्चा कीजिए।
Que. The partition of India was a violent separation of communities who had hitherto lived together. In light of the statement, discuss the difficulties faced by refugees in the process of partition.
दृष्टिकोण(i) भारत के विभाजन और समुदायों के हिंसक अलगाव का संक्षिप्त संदर्भ प्रस्तुत करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए। (ii) विभाजन की प्रक्रिया में शरणार्थियों द्वारा सामना की गई कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए। (iii) उचित निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए। |
परिचय
भारत का विभाजन मुस्लिम लीग के ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ संबंधी प्रस्ताव से प्रेरित था जिसके कारण ब्रिटिश भारत का दो देशों अर्थात ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ में विभाजन हो गया।
यह बंटवारा केवल संपत्तियों, देयताओं एवं परिसंपत्तियों अथवा देश की भौगोलिक सीमाओं का राजनीतिक विभाजन तक ही नहीं था बल्कि यह उन समुदायों का हिंसक अलगाव भी था जो अब तक पड़ोसियों के रूप में एक साथ रह रहे थे।
विभाजन की प्रक्रिया में शरणार्थियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा जैसे कि- ब्रिटिश भारत में एक विशिष्ट मुस्लिम बहुल क्षेत्र का अभाव और विभाजन संबंधी जनसांख्यिकीय चुनौती क्योंकि सभी मुस्लिम पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे। इस दौरान लोगों को अपने घरों को छोड़ने और सीमा पार जाने के लिए विवश होना पड़ा। इसके अतिरिक्त, विभाजन के दौरान शरणार्थियों को निम्नलिखित कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा।
विभाजन की प्रक्रिया में शरणार्थियों द्वारा सामना की गई कठिनाइयां
(i) जबरन प्रवासनः 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप मानव इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे तीव्र प्रवासन हुआ था। ऐसा अनुमान है कि विभाजन के कारण लगभग 80 लाख लोगों को सीमा पार स्थानांतरित होने के लिए विवश होना पड़ा था।
(ii) सीमा पारीय हिंसा और दंगेः विभाजन के कारण पूरे देश में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। विभाजन के दौरान पंजाब के अमृतसर शहर तथा बंगाल के नोआखली और कलकत्ता क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दंगे हुए। विभाजन के कारण उत्पन्न हुई इस हिंसा में लगभग पांच से दस लाख लोगों की मृत्यु हुई थी।
(iii) भावनात्मक आघातः शरणार्थियों को अपने घरों को छोड़ने और सीमा पार जाने संबंधी भावनात्मक आघात से गुजरना पड़ा था। प्रायः भागकर सुरक्षित स्थानों पर जाने के प्रयासों के दौरान परिवार बिछड़ जाते थे। इसके कारण उन्होंने भावनात्मक संकट और अपने प्रियजनों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता का सामना किया। विभाजन की हिंसा में बचे हुए लोग विभाजन को ‘दिलों का बंटवारा’ करने वाली घटना बताते थे।
(iv) लैंगिक हिंसाः विभाजन के दौरान सीमा के दोनों ओर हजारों महिलाओं का अपहरण किया गया और उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। कई मामलों में, ‘परिवार के सम्मान’ को बनाए रखने के लिए परिवार के सदस्यों द्वारा ही महिलाओं की हत्या कर दी गई थी। कई महिलाओं को अपने सतीत्व की रक्षा के प्रयास में आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा।
(v) पहचान का संकटः विभाजन के दौरान धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों द्वारा दूसरे समुदाय के लोगों को बेरहमी से मार डाला गया या अपंग बना दिया गया। इससे लोगों के समक्ष पहचान का संकट उत्पन्न हो गया। अतः अनेक लोगों ने या तो अपना धर्मांतरण कर लिया था या हिंसा से बचने के लिए अपनी असली धार्मिक पृष्ठभूमि को छिपा लिया था।
(vi) रोग और संक्रमणः अधिकांश शरणार्थियों ने सीमा के दोनों ओर शरणार्थी शिविरों में शरण ली। शरणार्थी शिविरों और बस्तियों में अत्यधिक भीड़-भाड़ एवं अस्वच्छ वातावरण के कारण हैजा और तपेदिक जैसे संक्रामक रोग फैल गए और अनेक लोग की मृत्यु हो गई।
निष्कर्ष
उपर्युक्त चुनौतियों के बावजूद भारतीय नेतृत्वकर्ताओं ने देश में सभी शरणार्थियों एवं अल्पसंख्यकों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। वस्तुतः विस्थापन और राहत संबंधी तात्कालिक कार्यों के साथ-साथ शरणार्थियों का पुनर्वास कार्य राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था।