ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विशिष्ट संदर्भ में 18वीं शताब्दी के भारत के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में कर्नाटक युद्धों की भूमिका पर चर्चा कीजिए। |
दृष्टिकोण:
(i) कर्नाटक युद्धों की व्याख्या करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिए।
(ii) संक्षेप में, तीन कर्नाटक युद्धों का वर्णन करने के साथ बताइए कि उन्होंने किस प्रकार उस समय की राजनीति को आकार दिया था।
(iii) तदनुसार निष्कर्ष दीजिए।
परिचय:
उत्तर: दक्षिण भारत में 18वीं शताब्दी में हुए कर्नाटक युद्धों का इस क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। ये युद्ध मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी और आर्कोट के नवाब तथा मराठों सहित विभिन्न स्थानीय शक्तियों के बीच लड़े गए सैन्य संघर्षों की एक श्रृंखला थे।
कर्नाटक युद्ध (1749-1763): प्रथम, द्वितीय और तृतीय
(i) प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748): यह उत्तराधिकार के ऑस्ट्रियाई युद्ध के कारण यूरोप में होने वाले आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध का विस्तार था। यह युद्ध फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुआ था। यह ऐक्स-ला-चैपल की संधि पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ था।
(ii) दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749-1754): हैदराबाद के निज़ाम और कर्नाटक के नवाब के पदों के लिए विभिन्न दावेदारों के बीच यह युद्ध हुआ था; प्रत्येक दावेदार को ब्रिटिश या फ्राँस द्वारा समर्थन दिया जा रहा था। पांडिचेरी की संधि के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ था जिसने फ्रांसीसी की क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को सीमित कर दिया था।
(iii) तीसरा कर्नाटक युद्ध (1757-1763): काउंट डी लाली और सर आयर कूट के नेतृत्व में क्रमशः फ्रेंच और ब्रिटिशों के बीच यह युद्ध हुआ था। इसमें ब्रिटिश विजयी हुए जिसकी परिणति भारत से फ्राँसीसियों की वापसी और ब्रिटिश प्रभुत्व में वृद्धि के रूप में हुई थी। वर्ष 1763 की पेरिस संधि द्वारा यह युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हुआ था।
कर्नाटक युद्धों ने 18वीं सदी के भारत के राजनीतिक परिदृश्य को किस प्रकार आकार दिया?
(i) इन युद्धों के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी प्रमुख क्षेत्रों और व्यापार मार्गों पर नियंत्रण प्राप्त करने के बाद भारत में प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरी। तीसरे कर्नाटक युद्ध से फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी कमज़ोर हुई जिससे इसके प्रभाव में गिरावट आने के साथ कुछ क्षेत्रों में इसका प्रभाव समाप्त हो गया।
(ii) कर्नाटक, मैसूर और हैदराबाद जैसे भारतीय राज्य यूरोपीय शक्ति संघर्ष में उलझ गए, जिससे उनके संसाधनों और सेना पर विपरीत प्रभाव पड़ने के साथ उनकी राजनीतिक स्थिरता कमज़ोर हुई।
(iii) कर्नाटक युद्धों में ब्रिटिश जीत से भारत में इसके प्रभुत्व का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
(iv) मराठा साम्राज्य ने कर्नाटक युद्धों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन युद्धों ने उन्हें अपने पारंपरिक क्षेत्रों से परे अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद की थी।
निष्कर्ष:
कर्नाटक युद्धों ने राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप दिया था जिसमें ब्रिटिश प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरे तथा इससे भविष्य के औपनिवेशिक शासन के लिये आधार तैयार हुआ था।
इसमें फ्रांसीसियों को असफलताओं का सामना करना पड़ा और भारतीय शक्तियाँ भी कमजोर हुई थीं इससे अंततः भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ था।