प्रश्न: वित्त आयोग के आवंटन से बाहर राज्यों को विशेष वित्तीय पैकेज प्रदान करने के निहितार्थ पर चर्चा कीजिए। इसके साथ ही भारत में राजकोषीय संघवाद और अंतर-राज्यीय समानता पर संभावित प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।
Discuss the implications of providing special financial packages to states outside the Finance Commission allocations. Also evaluate the possible impacts on fiscal federalism and inter-state equality in India.
उत्तर: भारत में राज्यों को वित्तीय संसाधनों का वितरण वित्त आयोग की अनुशंसाओं पर आधारित एक संस्थागत प्रक्रिया है। इसके बाहर विशेष पैकेजों का प्रावधान केंद्र सरकार की विवेकाधीनता को दर्शाता है, जो संघीय संतुलन, वित्तीय समानता और संस्थागत वैधता को प्रभावित कर सकता है।
विशेष पैकेज देने के औचित्य और प्रभाव
(1) प्रतिक्रिया-आधारित वित्तीय सहायता: विशेष पैकेज विभाजन या आपदाओं जैसी आकस्मिक परिस्थितियों में राज्यों की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रदान किए जाते हैं। इससे केंद्र सरकार को त्वरित हस्तक्षेप करने का अवसर मिलता है और स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
(2) अविकसित क्षेत्रों का समावेशी विकास: विशेष पैकेजों के माध्यम से बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन सुनिश्चित किए जाते हैं। यह कदम पिछड़े राज्यों के विकास को बढ़ावा देता है और उनके समग्र विकास को गति प्रदान करता है।
(3) राजनीतिक लाभ का साधन: विशेष पैकेजों का आवंटन कई बार राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा बन जाता है। इस प्रक्रिया में, इन पैकेजों का उद्देश्य केवल राजनीतिक संतुष्टि प्राप्त करना होता है, जिससे नीति निर्धारण में निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
(4) संविधानिक संस्थाओं की अवहेलना: वित्त आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाएं संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए स्थापित की गई हैं। इन संस्थाओं को दरकिनार कर केंद्र द्वारा दिए गए विशेष पैकेज उनके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करते हैं और संस्थागत ढांचे को कमजोर करते हैं।
(5) राजकोषीय विवेक का ह्रास: विशेष पैकेजों के माध्यम से अनियोजित खर्च केंद्र सरकार के बजटीय संतुलन पर दबाव डालता है। यह समष्टि अर्थशास्त्र की अस्थिरता को बढ़ाता है, जिससे महंगाई, वित्तीय घाटा और आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
राजकोषीय संघवाद एवं समानता पर प्रभाव
(1) केंद्र की विवेकाधीन शक्ति में वृद्धि: विशेष पैकेजों के माध्यम से केंद्र सरकार को राज्यों की वित्तीय आवश्यकता पर निर्णय लेने का अधिक अधिकार मिलता है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ता है। यह संघीय ढांचे में असंतुलन उत्पन्न करता है और केंद्र के प्रभुत्व को बढ़ाता है।
(2) अंतर-राज्यीय असंतुलन की आशंका: अगर विशेष पैकेजों का आवंटन पारदर्शिता से नहीं किया जाता, तो यह राजनीतिक समीकरणों के आधार पर राज्यों को प्राथमिकता देने की संभावना को जन्म देता है, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन और असंतोष की भावना बढ़ सकती है।
(3) शासन की गुणवत्ता का निर्धारणकर्ता बनना: विशेष पैकेजों का प्रभाव राज्य सरकारों के शासन की कार्यकुशलता पर निर्भर करता है। यदि राज्य में अच्छे प्रशासन की कमी है, तो पैकेज का सही तरीके से उपयोग नहीं हो पाता, जिससे संसाधन का अपव्यय और असंतुलन बढ़ सकता है।
(4) संघीय ढांचे की सैद्धांतिक क्षति: वित्त आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाओं को दरकिनार करना संघीय ढांचे के सिद्धांतों की अवहेलना करता है। इससे भारतीय संघीयता की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं और दीर्घकालिक संस्थागत अस्थिरता का खतरा हो सकता है।
(5) राज्यीय आत्मनिर्भरता का अवरोध: विशेष पैकेजों का बार-बार वितरण राज्यों में आत्मनिर्भरता की भावना को कमजोर करता है। इससे कुछ राज्यों में वित्तीय निर्भरता की मानसिकता विकसित हो सकती है, जो उनके विकास और स्वायत्तता के लिए बाधक बन सकती है।
विशेष वित्तीय पैकेजों की नीति केवल अपवादस्वरूप, पारदर्शी और तर्कसंगत मापदंडों पर आधारित होनी चाहिए। इससे न केवल वित्त आयोग की संस्थागत भूमिका संरक्षित रहेगी, बल्कि राज्यों की स्वायत्तता और अंतर-राज्यीय संसाधन संतुलन भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।