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प्रश्न: क्षेत्रीय सुरक्षा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में भारत-जापान साझेदारी के रणनीतिक महत्व का विश्लेषण कीजिए। ‘2+2’ बैठकों जैसी पहल इस संबंध को कैसे बढ़ाती हैं?

Analyze the strategic importance of the India-Japan partnership in the context of regional security and the Indo-Pacific region. How do initiatives like the ‘2+2’ meetings enhance this relationship?

उत्तर: भारत और जापान की रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना है। यह सहयोग स्वतंत्र समुद्री मार्ग, क्षेत्रीय विकास और सामरिक संवाद को बढ़ावा देता है। ‘2+2’ बैठकों जैसी पहलें इन प्रयासों को सशक्त बनाकर क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा संरचना को मजबूती प्रदान करती हैं।

भारत-जापान साझेदारी का रणनीतिक महत्व 

(1) सामरिक रक्षा सहयोग: भारत और जापान रक्षा अभ्यास, तकनीकी साझेदारी और सामरिक योजनाओं के माध्यम से अपनी सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। यह सहयोग क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने और बाहरी खतरों का सामना करने में सहायक है। दोनों देशों का यह सहयोग क्षेत्र की सामरिक स्थिरता को सशक्त करता है।

(2) मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत: दोनों देशों का साझा दृष्टिकोण हिंद-प्रशांत को स्वतंत्र और सुरक्षित क्षेत्र बनाने पर केंद्रित है। यह सहयोग समुद्री मार्गों की स्वतंत्रता और वैश्विक व्यापार की सुविधा सुनिश्चित करता है। इससे क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापारिक सुगमता को बढ़ावा मिलता है, जो भू-राजनीतिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।

(3) आर्थिक सहयोग: भारत-जापान साझेदारी आपसी निवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करती है। यह सहयोग आर्थिक स्थिरता को मजबूत करता है। हाई-स्पीड रेल परियोजनाएं और औद्योगिक कॉरिडोर जैसे संयुक्त प्रयास आर्थिक संबंधों को सशक्त बनाते हैं।

(4) चीन के प्रभाव को संतुलित करना: यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व का संतुलन बनाने का काम करती है। दोनों देश शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए सामरिक सहयोग कर रहे हैं। यह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और स्थिरता स्थापित करने के लिए रणनीतिक उपायों का हिस्सा है।

(5) तकनीकी और नवाचार सहयोग: दोनों देश रक्षा, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे उन्नत तकनीकी क्षेत्रों में साझेदारी कर रहे हैं। यह नवाचार सहयोग भविष्य की रणनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करता है। इस प्रकार का तकनीकी सहयोग उनकी रक्षा क्षमताओं को बेहतर और प्रभावी बनाता है।

‘2+2’ बैठकों की भूमिका

(1) सामरिक संवाद का मंच: ‘2+2’ बैठकें सामरिक संवाद के लिए एक सशक्त मंच प्रदान करती हैं। इनमें विदेश और रक्षा मंत्री रणनीतिक विषयों पर चर्चा करते हैं। यह बैठकें सामरिक सहयोग को अधिक प्रभावी और संगठित बनाती हैं। यह संवाद साझेदारी को व्यापक और गहराई प्रदान करता है।

(2) संयुक्त रक्षा योजना: इन बैठकों के दौरान दोनों देश सुरक्षा योजनाओं को साझा करते हैं। यह संयुक्त रणनीतियों के विकास को प्रोत्साहित करता है। ‘2+2’ बैठकें उनके रक्षा संबंधों को गहरा करने और साझा लक्ष्यों को साकार करने में मदद करती हैं। यह सामरिक स्थिरता और समन्वय को सुनिश्चित करती हैं।

(3) क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान: ‘2+2’ बैठकें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में दोनों देशों के प्रयासों को सामूहिक रूप से मजबूत करती हैं। यह बैठकें क्षेत्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए आपसी सहयोग को प्रेरित करती हैं।

(4) प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान: बैठकों के माध्यम से रक्षा और साइबर सुरक्षा तकनीकों का आदान-प्रदान किया जाता है। यह दोनों देशों की सामरिक क्षमताओं को उन्नत बनाता है। तकनीकी साझेदारी से उनकी नवाचार क्षमताएं और मजबूत हो जाती हैं। यह पहल भविष्य की जटिल चुनौतियों का सामना करने में मददगार है।

(5) सुरक्षा संरचना की मजबूती: इन बैठकों के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक विश्वसनीय सुरक्षा ढांचा विकसित होता है। यह सुरक्षा ढांचा क्षेत्रीय स्थिरता और शांति को बनाए रखने में सहायक होता है। यह पहल वैश्विक खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने का आधार प्रदान करती है।

भारत-जापान साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ‘2+2’ संवाद इन संबंधों को गहराई और प्रभावशीलता प्रदान करता है। यह सहयोग न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर शक्ति संतुलन और स्थायित्व स्थापित करने का एक प्रमुख साधन बन चुका है।

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