ग्रीक इतिहासकारों के विवरण प्राचीन भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के संबंध में मूल्यवान जानकारी प्रदान करते हैं। चर्चा कीजिए। |
दृष्टिकोण:
(i) प्राचीन भारत के बारे में लिखने वाले महत्वपूर्ण ग्रीक इतिहासकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
(ii) प्राचीन भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थित्तियों के बारे में इन ग्रीक इतिहासकारों द्वारा प्रदान किए गए विवरणों का उल्लेख कीजिए।
(iii) इन विवरणों की प्रामाणिकता से संबंधित मुद्दों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
(iv) तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
परिचय:
ग्रीक इतिहासकारों के विवरण प्राचीन भारत के संबंध में कुछ सबसे प्रारंभिक और सबसे व्यापक विवरण प्रदान करते हैं। ग्रीक कवि होमर द्वारा रचित दो महाकाव्यों नामतः इलियड और ओडिसी से प्राचीन भारत के बारे में अप्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
इसके अतिरिक्त, मेगस्थनीज, एरियन और स्ट्रैबो जैसे ग्रीक इतिहासकारों ने भारत का दौरा किया एवं इसके बारे में लिखा, उनके विवरणों से प्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त होते हैं।
प्राचीन भारत की सामाजिक स्थितियां:
1. आर्य संस्कृति में पितृसत्तात्मकताः होमर के इलियड और ओडिसी महाकाव्य में आर्य संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं, जैसे कि पुरुष-प्रधान समाज, शव को दफनाने की प्रथा एवं दाह संस्कार आदि का उल्लेख मिलता है।
2. दक्षिण भारत में मातृसत्तात्मकताः मेगस्थनीज ने अपने विवरण में पांड्य साम्राज्य का उल्लेख किया है। उनके अनुसार इस साम्राज्य पर महिलाओं का शासन था तथा यह मोतियों के लिए प्रसिद्ध था।
3. ईश्वर की पूजाः मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक “इंडिका” में भारतीय देवताओं के रूप में हेराक्लीज और डायोनिसस का उल्लेख किया है, जो क्रमशः विष्णु और शिव की पूजा का सबसे आरंभिक वर्णन है।
4. जाति व्यवस्थाः मेगस्थनीज ने भारतीय समाज के सात अलग-अलग वर्गों में विभाजित होने का उल्लेख किया है। यह जाति व्यवस्था के प्रचलन से स्पष्ट होता है। ध्यातव्य है कि जाति व्यवस्था का आधार व्यवसायों की वंशानुगत प्रकृति थी और अंतरवर्गीय विवाह पर प्रतिबंध था।
5. भौतिक संस्कृतिः एरियन ने बड़ी संख्या में नगरों का उल्लेख किया है। इस प्रकार यह दर्शाता है कि मौर्य काल में गंगा बेसिन में भौतिक संस्कृति का तीव्र विकास हुआ था।
6. महिलाओं की स्थितिः सिकंदर के इतिहासकारों द्वारा प्रदान किए गए विवरणों से हमें सती प्रथा, गरीब माता-पिता द्वारा बाजारों में लड़कियों की बिक्री के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
प्राचीन भारत की आर्थिक स्थितियां:
1. वैदिक काल के दौरानः होमर के विवरणों के अनुसार प्राचीन भारत में कृषि और पशुचारण आजीविका के प्रमुख स्रोत थे। वैदिक लोग घोड़ों को पालते थे, जिनका उपयोग सवारी और गाड़ियां चलाने हेतु किया जाता था।
2. मौर्यकालीन व्यापारी संघः स्ट्रैबो के अनुसार, स्वतंत्र कारीगरों के अलावा, शस्त्र बनाने वालों और जहाज का निर्माण करने वालों को राज्य द्वारा नियोजित किया जाता था और उन्हें वेतन दिया जाता था। अधिकांश कारीगर या तो व्यक्तिगत रूप से या संघों जिन्हें ‘श्रेणी या पुगा’ कहा जाता था, के सदस्यों के रूप में कार्य करते थे।
3. मौर्यकालीन कृषिः मेगस्थनीज ने कृषि भूमि पर खेती करने वाले विशेष वर्ग के बहुसंख्यक किसानों का उल्लेख किया है। किसान एक वर्ष में दो फसलों का उत्पादन करते थे। यह प्राचीन भारत में भूमि की अच्छी उर्वरता को दर्शाता है।
4. मौर्यकालीन सिंचाई व्यवस्थाः मेगस्थनीज ने नदियों का उल्लेख किया है, जो परिवहन, नौवहन और सिंचाई के दोहरे उद्देश्य को पूरा करती थीं। मेगस्थनीज ने भारत की निरंतर बढ़ती हुई कृषि उपज के लिए पूरा श्रेय सिंचाई व्यवस्था को दिया है।
5. मौर्यकालीन व्यापार एवं वाणिज्यः प्रथम और द्वितीय शताब्दी के ग्रीक और रोमन विवरणों में अनेक भारतीय बंदरगाहों एवं व्यापार की वस्तुओं का उल्लेख मिलता है।
पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी और टॉलमी की जियोग्राफी दोनों ग्रीक भाषा में लिखी गई पुस्तकें हैं। ये प्राचीन भूगोल और वाणिज्य के अध्ययन हेतु मूल्यवान आंकड़े प्रदान करती हैं।
इसके अतिरिक्त, प्राचीन भारत में सुविकसित सड़कें थीं, जिनका प्रयोग व्यापार मार्गों के रूप में किया जाता था।
6. सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां: यद्यपि ग्रीक विवरण प्राचीन भारत के तत्कालीन सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के संबंध में कुछ मूल्यवान जानकारी प्रदान करते हैं, लेकिन उनका अध्ययन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। उन्हें कई परिप्रेक्ष्यों में से एक के रूप में देखा जाना चाहिए, जैसा कि निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है:
मेगस्थनीज ने भारत में दास प्रथा की अनुपस्थिति का उल्लेख किया है। जबकि, हम “विष्टी” नामक कर से अवगत हैं, जिसके अंतर्गत कर के बदले में जबरन श्रम कराया जाता था। कौटिल्य ने भी विभिन्न प्रकार के दासों का वर्णन किया है।
मेगस्थनीज के अनुसार निजी भूमि मौजूद नहीं थी क्योंकि संपूर्ण भूमि राज्य के स्वामित्व के अधीन हुआ करती थी। वहीं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में ब्रह्मादेय, देवदान, अग्रहार जैसे विभिन्न प्रकार के भूमि अनुदान का उल्लेख मिलता है।
निष्कर्ष:
प्राचीन भारतीय समाज की अधिक उत्कृष्ट समझ प्राप्त करने के लिए, भारतीय ग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों सहित कई अन्य स्रोतों से सहायता लेकर अध्ययन करना अति आवश्यक है।