प्रश्न: वायु प्रदूषण से निपटने में भारत की वाहन परिमार्जन नीति की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। विशेषकर कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कौन-सी चुनौतियां इसकी सफलता में बाधक बनी हैं?
Critically analyze the effectiveness of India’s vehicle scrappage policy in combating air pollution. What challenges have impeded its success, particularly in states like Karnataka and Maharashtra?
उत्तर: भारत की वाहन परिमार्जन नीति का लक्ष्य पुराने और अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाकर वायु गुणवत्ता में सुधार करना है। यह कदम ऑटोमोबाइल उद्योग को प्रोत्साहित करने, सड़क सुरक्षा बढ़ाने और संसाधनों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के लिए भी लिया गया है।
वाहन परिमार्जन नीति की प्रभावशीलता:
(1) वायु प्रदूषण में कमी: इस नीति से पुराने और प्रदूषणकारी वाहनों को हटाया जाता है, जिससे वाहनों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है। शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे प्रदूषण जनित रोगों में भी कमी आ सकती है।
(2) संसाधन पुनर्चक्रण: स्क्रैपिंग प्रक्रिया से धातु, रबर और अन्य सामग्रियों का पुनर्चक्रण किया जाता है। इससे नए वाहनों के निर्माण में कच्चे माल की मांग घटती है और औद्योगिक कचरे में भी कमी आती है। यह प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
(3) ऑटोमोबाइल उद्योग को बढ़ावा: वाहन परिमार्जन नीति नए वाहनों की मांग को बढ़ाती है, जिससे ऑटोमोबाइल उद्योग को मजबूती मिलती है। इससे उत्पादन, रोजगार और आर्थिक विकास को गति मिलती है। यह नीति इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
(4) सड़क सुरक्षा में सुधार: पुराने और असुरक्षित वाहन सड़क दुर्घटनाओं के लिए एक बड़ा खतरा होते हैं। इस नीति से ऐसे वाहनों को हटाया जाता है, जिससे यातायात सुरक्षा में सुधार होता है। इससे सड़क दुर्घटनाओं की संख्या घट सकती है और यात्रा अधिक सुरक्षित हो सकती है।
(5) ईंधन दक्षता में वृद्धि: आधुनिक वाहनों में उन्नत तकनीक होती है, जिससे ईंधन की खपत कम होती है। इसके परिणामस्वरूप वाहनों से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है, जिससे पर्यावरणीय लाभ सुनिश्चित होते हैं। ईंधन की बचत से उपभोक्ताओं की लागत भी कम हो सकती है।
कर्नाटक और महाराष्ट्र में नीति की सफलता में बाधक चुनौतियाँ:
(1) अपर्याप्त स्क्रैपिंग सुविधाएँ: इन राज्यों में पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग केंद्रों की संख्या सीमित है। इससे पुराने वाहनों को हटाने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे नीति का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित होता है और प्रदूषण नियंत्रण प्रभावित होता है।
(2) कम जागरूकता: वाहन मालिकों में नीति के लाभों और प्रक्रिया की जानकारी का अभाव है। इससे वे पुराने वाहनों को स्क्रैप करने में रुचि नहीं दिखाते, जिससे सड़कों पर अधिक प्रदूषणकारी वाहन बने रहते हैं। जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।
(3) वित्तीय प्रोत्साहन की कमी: सरकार द्वारा स्क्रैपिंग के लिए दी जाने वाली सब्सिडी और छूट अपर्याप्त हैं। नए वाहन खरीदने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन न मिलने के कारण कई वाहन मालिक अपने पुराने वाहनों का उपयोग जारी रखते हैं।
(4) नियामक बाधाएँ: नीति के प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कमी है। इससे अनुमति प्रक्रिया जटिल और धीमी हो जाती है, जिससे वाहन मालिकों को नई नीति अपनाने में कठिनाई होती है।
(5) अवैध वाहन स्क्रैपिंग: अनधिकृत स्क्रैपिंग केंद्रों की मौजूदगी से पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन होता है। इसके कारण अनियंत्रित कचरा प्रबंधन और हानिकारक पदार्थों का अवैध निपटान पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकता है।
भारत की वाहन परिमार्जन नीति वायु प्रदूषण को कम करने और स्वच्छ परिवहन व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अधिक स्क्रैपिंग केंद्र, व्यापक जागरूकता और वित्तीय प्रोत्साहन आवश्यक हैं। राज्य सरकारों को नियामक बाधाओं को दूर कर नीति को सुचारू रूप से लागू करने पर कार्य करना चाहिए।