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प्रश्न: भारत में दवा प्रतिरोधी तपेदिक (टीबी) के लिए कम समय के लिए सुरक्षित उपचार शुरू करने के महत्व पर चर्चा कीजिए। ये नियम उपचार के परिणामों को कैसे सुधार सकते हैं और 2025 तक टीबी उन्मूलन के लक्ष्य में कैसे योगदान दे सकते हैं?

Discuss the significance of introducing shorter, safer regimens for drug-resistant tuberculosis (TB) in India. How can these regimens improve treatment outcomes and contribute to the goal of TB elimination by 2025?

उत्तर: तपेदिक (टीबी) एक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होता है। यह मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी फैल सकता है। दवा प्रतिरोधी टीबी (DR-TB) में पारंपरिक दवाएं प्रभावी नहीं होतीं, जिससे इसका इलाज कठिन हो जाता है। भारत में DR-TB के लिए कम समय के सुरक्षित उपचार को अपनाना टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।

दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए कम समय के उपचार की आवश्यकता

(1) लंबे उपचार की समस्या: DR-TB का पारंपरिक उपचार 20 महीने तक चलता है, जिससे रोगी उपचार अधूरा छोड़ सकते हैं। यह उपचार ड्रॉपआउट्स को बढ़ाता है और संक्रमण का प्रसार बढ़ सकता है। लंबे समय तक दवा लेने से रोगियों पर मानसिक और शारीरिक दबाव भी बढ़ता है।

(2) छोटी अवधि की प्रभावशीलता: बीपीएएलएम रेजिमेन केवल 6 महीने में उपचार पूरा करता है, जो अधिक प्रभावी और रोगी केंद्रित है। यह उपचार रोगियों को जल्दी ठीक करने में मदद करता है और टीबी के प्रसार को रोकने में सहायक है।

(3) रोगियों की सहनशीलता: कम समय के उपचार से दुष्प्रभाव कम होते हैं, जिससे रोगी उपचार को पूरा करने में सक्षम होते हैं। यह रोगियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और उपचार प्रक्रिया को सरल बनाता है।

(4) सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार: कम अवधि के उपचार से संक्रमण की श्रृंखला जल्दी टूटती है, जो सामूहिक स्वास्थ्य लाभ पहुंचाती है। यह टीबी के प्रसार को रोकने में मदद करता है और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव को कम करता है।

(5) सरकारी प्रयास: केंद्र सरकार ने विकेंद्रीकृत देखभाल सुनिश्चित करने के लिए 826 टीबी उपचार केंद्र स्थापित किए हैं। यह प्रयास टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है और जागरूकता अभियान को बढ़ावा देता है।

कम समय के उपचार के लाभ

(1) सफलता दर में वृद्धि: बीपीएएलएम रेजिमेन ने 90% तक सफलता दर दी है, जो पारंपरिक उपचारों से अधिक है। यह उपचार रोगियों को तेजी से ठीक करता है और टीबी के मामलों को कम करने में सहायक है।

(2) दुष्प्रभाव में कमी: दवा प्रतिरोधी टीबी का यह उपचार अन्य उपचारों की तुलना में कम जटिलताएं उत्पन्न करता है। यह रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है और उपचार प्रक्रिया को अधिक सहनीय बनाता है।

(3) आर्थिक लाभ: यह उपचार न केवल मरीजों के लिए बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी किफायती साबित होता है। यह गरीब वर्ग के लिए अधिक सुलभ है और स्वास्थ्य बजट को प्रभावी ढंग से उपयोग करता है।

(4) स्वास्थ्य सेवा पर दबाव घटाना: कम अवधि के उपचार से अस्पताल और चिकित्सकीय संसाधनों पर भार कम होता है। यह स्वास्थ्य सेवाओं की कार्यक्षमता को बढ़ाता है और अधिक रोगियों को उपचार प्रदान करता है।

(5) सामाजिक स्वीकृति में वृद्धि: कम समय के कारण यह उपचार समुदायों और परिवारों में अधिक स्वीकार्य है। यह उपचार प्रक्रिया को सरल बनाता है और रोगियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।

2025 तक टीबी उन्मूलन लक्ष्य में योगदान

(1) सक्रिय मामलों की शीघ्र पहचान: नवीनतम तकनीकों और मोबाइल क्लीनिक्स से रोग का शीघ्र निदान संभव है। यह टीबी के प्रसार को रोकने में मदद करता है और उपचार प्रक्रिया को तेज करता है।

(2) जागरूकता अभियान: व्यापक स्तर पर जन अभियान टीबी से जुड़ी भ्रांतियों को कम कर रहे हैं। यह अभियान टीबी के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सहायक है और समुदायों को शिक्षित करता है।

(3) दवा संवेदनशीलता परीक्षण: UDST तकनीक ने सही उपचार सुनिश्चित करने में मदद की है। यह टीबी के निदान और उपचार को प्रभावी बनाता है और रोगियों को सही दवा प्रदान करता है।

(4) अनुसंधान और नवाचार: नए उपचार और दवाओं की खोज ने टीबी नियंत्रण को तेज कर दिया है। यह टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है और उपचार प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाता है।

(5) सरकारी समर्थन: 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य के लिए सरकार के नीतिगत प्रयास लगातार जारी हैं। यह प्रयास टीबी उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण हैं और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाते हैं।

भारत में दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए छोटी अवधि के उपचार का महत्व अत्यधिक है। यह उपचार सफलता दर को बढ़ाता है, रोगियों के अनुभव को बेहतर बनाता है और स्वास्थ्य प्रणाली पर आर्थिक व संसाधन दबाव को कम करता है। प्रभावी सरकारी नीतियां और जागरूकता प्रयास भारत को 2025 तक टीबी उन्मूलन लक्ष्य के करीब ला सकते हैं।

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