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प्रश्न: हाल के वर्षों में संघ से राज्यों को कर हस्तांतरण में वृद्धि की मांग में अत्यधिक तेज़ी आई है। इस सन्दर्भ में, भारत में ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन को समाप्त करने के साधन के रूप में शुद्ध आय का हिस्सा 50% तक बढ़ाने के निहितार्थों की जांच कीजिए।

Que. There has been a growing demand for increasing tax transfers from the Union to the States in recent years. In this context, examine the implications of increasing the share of net income to 50% as a means of eliminating vertical fiscal imbalances in India.

उत्तर की संरचना

(i) परिचय: ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन को परिभाषित कीजिए और राज्यों के कर हिस्से को 50% तक बढ़ाने की मांग कीजिए।

(ii) मुख्य भाग: सकारात्मक प्रभावों (वित्तीय स्वायत्तता, क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना) और चुनौतियों (संघ के वित्त पर प्रभाव, राजकोषीय कुप्रबंधन) पर चर्चा कीजिए।

(iiii) निष्कर्ष: राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को बनाए रखते हुए राजकोषीय संघवाद को मजबूत करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दीजिए।

परिचय

भारत की संघीय संरचना में राजस्व का वितरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। राजकोषीय संघवाद के सिद्धांत के अनुसार, कर राजस्व का उचित और न्यायसंगत बंटवारा संघ और राज्यों के बीच होना चाहिए। हालांकि, राज्यों की आय और व्यय की जिम्मेदारियों में असमानता के कारण राजकोषीय असंतुलन (Fiscal Imbalance) उत्पन्न होता है, जिसे ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन कहा जाता है। इसे दूर करने के लिए, हाल के वर्षों में संघ से राज्यों को कर हस्तांतरण में वृद्धि की मांग बढ़ी है। राज्यों का तर्क है कि उनकी शुद्ध आय का हिस्सा 50% तक बढ़ाने से वित्तीय संतुलन स्थापित किया जा सकता है।

ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन और इसके प्रभाव

(i) राजस्व का असमान वितरण: भारतीय संविधान के तहत, राज्यों की आय की तुलना में उनके पास अधिक व्यय संबंधी जिम्मेदारियां हैं। अधिकांश महत्वपूर्ण कराधान अधिकार संघ के पास हैं, जैसे कि आयकर, कॉर्पोरेट टैक्स, जीएसटी का केंद्रीय हिस्सा आदि।

(ii) राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता में कमी: राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को सीमित करने वाले कारक, जैसे संघीय हस्तांतरण और केंद्रीय योजनाओं में बढ़ती हिस्सेदारी, उनके स्वतंत्र निर्णयों को प्रभावित करती है।

(iii) विकासात्मक जिम्मेदारियाँ: राज्यों को स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में बड़े खर्चों का सामना करना पड़ता है, जबकि उनके पास संसाधनों की कमी होती है। इससे उनके विकासात्मक कार्यों में बाधा आती है।

शुद्ध आय का हिस्सा 50% तक बढ़ाने के निहितार्थ

(i) राज्यों की वित्तीय क्षमता में वृद्धि: यदि संघ से राज्यों को शुद्ध आय का हिस्सा 50% तक बढ़ाया जाता है, तो राज्यों के पास अपने विकासात्मक और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए अधिक संसाधन होंगे। इससे राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता में सुधार होगा और वे अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर योजनाएं बना सकेंगे।

(ii) क्षेत्रीय असंतुलन कम होगा: राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता मिलने से वे अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार संसाधनों का उचित आवंटन कर सकेंगे, जिससे क्षेत्रीय असमानताएँ कम हो सकती हैं। विशेषकर पिछड़े राज्यों में विकास को गति मिलेगी।

(iii) राजकोषीय संघवाद की मजबूती: कर हस्तांतरण बढ़ाने से संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध बेहतर होंगे। यह संघीय ढांचे को मजबूत करेगा और राजकोषीय संघवाद को एक स्थायी और प्रभावी प्रणाली के रूप में उभरने में मदद करेगा।

(iv) नियोजन और योजना के निर्णयों में स्वतंत्रता: राज्यों के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन होंगे, जिससे वे अपनी योजनाओं और परियोजनाओं को केंद्रीय अनुदान या हस्तक्षेप के बिना कार्यान्वित कर सकेंगे। इससे उनकी योजना निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

(v) संघीय वित्त आयोग पर भार में कमी: यदि राज्यों को अधिक कर राजस्व हस्तांतरित किया जाता है, तो संघीय वित्त आयोग की भूमिका कम हो सकती है, जिससे राज्यों को अनुदान की आवश्यकता कम होगी और केंद्र पर वित्तीय भार कम होगा।

चुनौतियाँ और संभावित चिंताएँ

(i) संघ के वित्तीय दायित्वों में बाधा: यदि शुद्ध आय का बड़ा हिस्सा राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है, तो संघीय सरकार के पास रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, और पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश करने के लिए कम संसाधन होंगे।

(ii) राज्यों की वित्तीय अनुशासन की कमी: राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन मिलने पर वित्तीय अनुशासन और जवाबदेही का मुद्दा उठ सकता है। कई बार राज्यों द्वारा वित्तीय प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया जाता, जिससे घाटा बढ़ सकता है।

(iii) आर्थिक असंतुलन: सभी राज्यों की वित्तीय स्थिति समान नहीं होती। ऐसे में राजस्व का समान वितरण कुछ राज्यों को लाभ पहुंचा सकता है, जबकि कमजोर वित्तीय स्थिति वाले राज्य विकास में पिछड़ सकते हैं।

(iv) संघीय योजनाओं का प्रभावित होना: यदि राज्यों को अधिक कर हस्तांतरण किया जाता है, तो केंद्रीय योजनाओं और परियोजनाओं में कटौती का सामना करना पड़ सकता है, जिनका देशव्यापी महत्व है।

निष्कर्ष

शुद्ध आय का हिस्सा 50% तक बढ़ाना ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इससे राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता में वृद्धि होगी, क्षेत्रीय असंतुलन कम होंगे, और राजकोषीय संघवाद को मजबूती मिलेगी। हालाँकि, इसके साथ ही वित्तीय अनुशासन, केंद्रीय दायित्वों और क्षेत्रीय असमानताओं जैसी चुनौतियों का भी ध्यान रखना आवश्यक होगा। भारत की संघीय संरचना के तहत वित्तीय संतुलन को बनाए रखने के लिए संघ और राज्यों के बीच एक समन्वित दृष्टिकोण आवश्यक है, ताकि देश का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके।

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